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भादर्श-ज्ञान
____ कई वंशावलियों में वद्य पदवी प्राप्त करने वाले मेहताजी लालचन्दजी साहिब का समय विक्रम की पन्द्रहवीं शताब्दी का लिखा मिलता है; तदनुसार कई लेखकों ने अपनी पुस्तकों में भी वही समय छपवा दिया है; परन्तु विक्रम की चौदहवीं शताब्दी के लिखे ग्रन्थों से पाया जाता है कि श्रेष्ठि गोत्र वालों को वैद्य पदवी विक्रम संवत् १३९३ के पूर्व ही मिल चूकी थी, जैसेकि उपकेश गच्छचरित्र में निम्न लिखित प्रमाण मिलता है:"यो वैद्यशाखा व्रतति वसन्तः;
सदा मुदा स्वइच्छ मनः स्वभावः । यस्य प्रसादेन मनीषि तेन, __सकर्मणः संघपतिर्बभूवः । ५६० । वि. सं. १३९३ के लिखे उपकेश गच्छ चरित्र से ।
इस श्लोक से पाया जाता है कि सं० १३९३ के पूर्व वैद्य मेहतों में कई संघपति हो चुके जिनका वणन उपकेश गच्छ पट्टावली में विस्तार से मिलता है । __ कई वंशावलियों में वैद्य पदवी प्राप्त करने वाले स्वनाम धन्य श्रीमान लालचन्दजी साहिब का समय वि. सं. १२०१ का होना वतलाया है।
चाणोद के कुलगुरु के पास श्रेष्टिगौत्र एवं वैद्य मेहता शाखा की वंशावली है, जिसमें भी वैद्य पदवी प्राप्त करने वाले लालचन्दजी साहिब का समय वि० सं. १२०१ का ही बतलाया है, इतना ही क्यों पर उस वंशावली की बहियों में तो श्रीमान् लालचन्दजी साहिब से जोरावरसिंहजी साहिब तक का खुर्शी