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________________ वंश परिचय शासन की बड़ी भारी उन्नति की थी। पट्टावल्यादि ग्रन्थ से पाया जाता है कि प्रभु पार्श्वनाथ की पाट परपराम्पार में-१४वें पाट देवगुप्त सूरि जाति से श्रेष्ठि गौत्र के वीर थे। २१ वें पाट रत्नप्रभसूरि जाति के श्रेष्ठि गौत्रीय थे । २५ वें पाट सिद्धसूरि " " " " " " । २९ वें पाट कक्कसूरि , , , , , ,। ३६ वें पाट कक्कसूरि , " " " " " । ३७ वें पाट देवगुप्त सूर , , , , , ,। ४४ वें पाट सिद्धसूरि " " " " " । इनके अलावा श्रेष्ठि गौत्रीय अनेक दानवीर नर रत्नोंने लाखों, करोड़ों द्रव्य व्यय कर के आचार्यों के पद महोत्सव किए, बड़े बड़े संघ निका न कर तीर्थयात्रा की, कई मन्दिर मूर्तियों की प्रतिष्ठा करवाई और दुष्कालादि के समय असंख्य द्रव्य खर्चकर साधर्मी एवं देश वासियों को सहायता कर उनके प्राण बचाये । इसी श्रेष्ठि गौत्र में विक्रम की तेरहवीं शताब्दी में स्वनामधन्य मेहताजी लालचन्दजी साहिब नामके प्रख्यात पुरुष हुए, आप पर जैसे गुरु देव की कृपा थी वसे ही सच्चाविका देवी की भी मेहरबानी थी अर्थात् आप बड़े ही इष्ट बली थे । आपकी शादी चित्तौड़ के दीवान सारंगशाह चोरड़िया के यहां हुई थी। एक समय आपका पधारना चित्तौड़ हुआ; महाराणीजी के नेत्रों की असह्य वेदना आपके इलाज से शान्त हुई । महाराणा ने प्रसन्न होकर आप को वैद्यपदवी के साथ बारह प्राम इनाम में दिये, जबसे भापकी सन्तान वैद्य मेहता कहलाई।
SR No.002447
Book TitleAadarsh Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1940
Total Pages734
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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