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________________ वंश परिचय मकान में खाने पीने के विविध पक्वान और माल मिष्ठान्न होते थे, आज वहां रूखे सूखे टुकड़े और उपवासादि व्रत होने लग गये हैं, जिस मकान में रंग, राग और खेल खिलवाड़ होते थे आज वहां लम्बे लम्बे शब्दों से भक्ति एवं वैराग्यमय पद गाये जा रहे हैं । जिस स्थान पर भोगियों की भोग सामग्री दृष्टि गोचर होती थी वहीं आज योगियों की योग सामग्री एकत्र की जा रही है। जहां राग, द्वेष और पर-निन्दा आदि कर्म बन्ध करने वाली गप्पें मारी जाती थी वहां आज सामायिक पौषध प्रतिक्रमण और धर्मचर्चाहो रही है। इतना ही क्यों पर नवयुवक ने तो अपनी वैराग्य की धुन में धीरे धीरे दीक्षा के योग्य वस्त्र पात्र औघा वगैरह सब उपकरणों को मंगवा कर संग्रह कर लिया और दीक्षा के लिए चैत बदी ८ का शुभ मुहुर्त भी निश्चय कर लिया। अहा ! क्या ही सुन्दर कथन है कि वैराग्य का जन्म ही राग से होता है, अर्थात् वैराग्य का कारण ही राग है । २-वंश परिचय इतिहास के अनुसंधान से इस बात का स्पष्ट निर्णय हो चुका है कि वीरात् ७० वर्षे प्राचार्य रत्नप्रभसूरि उपकेश नगर में पधार कर सूर्यवंशी राजाउत्पलदेव, चंद्रवंशी मन्त्री उहड़ और लाखों क्षत्रियों की मंत्रों द्वारा शुद्धि की, और जैन धर्म में दीक्षित कर उन सबका "महाजन वंश" स्थापन किया था। .
SR No.002447
Book TitleAadarsh Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1940
Total Pages734
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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