________________
आदर्श-ज्ञान
युवक-महाराज ! अब आप भिक्षा को न जाना, मैं आपको सन्तुष्ट कर दूंगा, आप भोजन कर यहाँ पधार जाना ।
ब्राह्मण-सेठजी मैं चार बजे वापिस आकर संभाल लगा आप विश्वास रखें आपका दर्द मिट जायगा। .
युवक-ठीक देवता, श्राप जल्दी पधारना ।
ब्राह्मण तो चला गया, पट्टी ने इतना असर किया कि उसके बांधने से फोड़ा फूट गया और उसके अन्दर से पीप आने लगी। जब चार बजे ब्राह्मण देवता आया, और पट्टी खोलो तो उसके अन्दर से करीब एक सेर बिगड़ा हुआ रक्त (राद) निकल आया। विप्रदेव ने एक पट्टी और बना कर बांध दी । युवक को रात्रि में ठीक निद्रा श्रागई, सुबह पट्टी खोली तो दर्द बिल्कुल जाता रहा । विप्रदेव ने इसके बाद रूई, हल्दी और तेल की पट्टी बांध दी जिससे थोड़े ही दिनों में घाव भर गया, और चार पांच दिनों में तो युवक आनन्द से हिलने फिरने लग गया, इस हालत में युवक ने विप्रदेव को अन्न वस्त्र और नकद द्रव्य देकर खूब ही संतुष्ट किया।
नवयुवक महाशय अब बिल्कुल आरोग्य व तन्दुरुस्त हो गये, किन्तु दुःख में की हुई प्रतिज्ञा और मुनिअनाथी की सज्झाय को एक क्षण भर भी नहीं भूला, आपको वैराग्य का रंग दिन दुगुना और रात चौगुना बढ़ता ही गया; यही कारण है कि जिस कमरे (मकान) में कांच, तस्वीर इत्यादि की सजावट थीं उमी कमरे में धार्मिक पुस्तकें और कई नक्शे लगाये गये थे, जिस कमरे में पलंग, गद्दी, तकिये रखे हुये थे उस स्थान में काष्ट के पाटे, ऊन के संस्तारिये और आसन रखे जाने लगे, जिस