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आदर्श-ज्ञान
वेदना इतनी असह्य हो गई है कि जिसको मैं सहन नहीं कर सकता हूँ । अतः रोने के अलावा और कोई उपाय ही नहीं है, यदि आप कृपा कर मुझे कुछ सुनावें तो अच्छा है ।
वृद्ध - अनाथी मुनि की सज्झाय अर्थात् कवितामय जीवन खूब राग रागनी से गा कर सुनाया और साथ में थोड़ा थोड़ा अर्थ भी कह कर समझाया ।
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युवक – मुनि श्रनाथी के जीवन को ध्यान लगा कर सुना और उस पर विचार किया कि संसार एवं माता, पिता, भाई, स्त्री आदि कुटुम्ब सब स्वार्थ का है, जिनके लिए हम संसार में रह कर कर्मबन्धन करते हैं, पर जब कर्म भोगने का समय आवेगा तब अकेले को ही भोगना पड़ेगा, जैसे कि मैं आज भोग रहा हूँ इससे तो बेहतर है कि इस संसार को त्याग कर आत्म कल्याण में लग जाना । इस प्रकार के दुःख में भी आपकी भावना यहां तक बढ़ गई कि उन वृद्ध के सामने प्रतिज्ञा कर ली कि अगर मैं इस वेदना से मुक्त हो जाऊँ तो संसार का त्याग कर दीक्षा ग्रहण कर लूँगा, जैसे अनाथी मुनिराज ने की थी ।
वृद्ध - भाई, प्रतिज्ञा सोच विचार के ही करना, कारण दुःख गर्भित वैराग्य थोड़े ही समय रहता है ।
युवक – नहीं २ मुताजी, मैं केवल दुःख के मारे ही प्रतिज्ञा नहीं करता हूँ, पर मैं संसार के स्वरूप को जान कर ही प्रतिज्ञा कर रहा हूँ और दुःख जाने पर इस प्रतिज्ञा का शीघ्र ही पालन करूँगा ।
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वृद्ध- - अच्छा भाई एक बात मेरी भो स्मरण में रखना और वह यह है कि यदि आप दीक्षा लें और बाद में कभी