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________________ - वैराग्य का कारण मध्य रात्रि का समय था, मकान के एक कमरे के अन्दर चारपाई पर एक नवयुवक टक टक करता हुआ निश्वास डाल कर रुदन कर रहा था । उसी समय पड़ोस में रहने वाला एक वृद्ध सज्जन पेशाब करने को अपने मकान से बाहर आया, और उसने निःशब्द रात्रि में कारुण्य शब्द सुना तो उसका हृदय दया से लबालब भर उठा। पेशाब कर सीधा ही नवयुवक के पास आया और कहने लगा । बृद्ध – अरे भाई, तू इस प्रकार रुदन क्यों करता है, क्या आज तेरे शरीर में वेदना विशेष हो गई है ? १ युवक – उत्तर में कुछ जवाब नहीं दिया पर जोर जोर से रोने लगा । वृद्ध - आप समझ गये कि वास्तव में आज इसकी वेदना बढ़ गई मालूम होती है । इसी कारण कहा कि भाई तुम जानते हो और व्याख्यान में भी हमेशा सुनते हो कि दुःख एवं सुख कर्मानुसार होता है, और जब वे उदय भावमें आते हैं तब भोगने ही पड़ते हैं। फिर भी दुःख हो या सुख हो वह सदैव नहीं रहता है। कहा है कि " वह भी गुजर गया तो यह भी गुजर आयगा” अतः इस समय रोने की जरूरत नहीं पर परमेश्वर एवं नवकार मंत्र का ध्यान करना चाहिये इत्यादि, वृद्धने धैर्य्य दिलाया । युवक – मुताजी ! मैं इस बात को ठीक तौर पर जानता हूँ कि दुःखं सुख पूर्व संचित कर्मों का ही फल है, पर क्या करूँ
SR No.002447
Book TitleAadarsh Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1940
Total Pages734
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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