________________
- ५४ -
041040
जाना था पीसांगन आपको, अशुभ कमों ने घेर लिया । यही कारण था ब्यावर आने का,संघ ने स्वागत खूब किया।। किया उपकार बहुत दवा का, साफ आराम हुआ नहीं । जाना था कापरडे आपको, विहार वहां से किया सही ।।१८५।।
हीन पुरुषार्थी कह देते है, हम एकेले क्या करे । पढ़ लो जीवन गुरुवर्य का, एकेला भी क्या न करे। बोर्डिग खुलाये करके परिश्रम,पाठशालाएँ कई स्थपाई है।
सेवा मण्डल कई स्थानों में, लायब्रेरियें खुलाई है ॥१८॥ जीर्णाद्वारों में था हाथ श्रापका, प्रतिष्ठाएँ कई कराई है। तीर्थों की करवाई रचना, संघ यात्रा सुखदाई है ।। घूम घूम उपदेश दिया गुरु, जागृति खूब फैलाई है । पतितों का उद्धार किया था, कई को दीक्षा दिलाई है ॥१८७॥
छोटा बड़ा ग्रंथ दोय सौ, लिखकर आप छपाये हैं । चार लाख पुस्तकों उनकी, सब विषय उसमें आये हैं। प्रचार हुश्रा सर्वत्र ज्ञान का, अज्ञान डूबकर मरते हैं ।
फिर भी सहायक कौन आपके,सब काम हाथों से कहते हैं।। १८८ सत्य कहने की आदत आपकी, फिर निडर हो कहते हैं । परवाह नहीं किस की सत्य में, योग युक्ति से रहते हैं। मेमरनामा के कारण एक दम,समाज खिलाफ हो पाया था। फिर भी था वह सुधार वाजिंत्र, युवकों ने अपनाया था ।।१८९।।
जैन जाति निर्णय लिखने से, कई भाई नाराज हुए । अनुकम्पा और दान छत्तीसी, पन्थी भी कई गुस्से हुए। स्थानकवासी तो थे पहले से, रोस का कोई पार नहीं । व्यर्था भोजक व्हम करके, नाम आप का गाते सही ॥१९०॥