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________________ सत्य का खड़ग हाथ में लेकर, पेश सभी से आते हैं । जब करते हैं वीर गर्जना, कायर सब भग जाते हैं। इतिहासप्रेमी मरूधरकेसरी, सार्थ कर बतलाया नाम । मैं क्या गाऊँ गुण आपके, सब जग गाता पाकर काम ॥१९१।। नहीं कवि कविता नहीं जाणु, फिर भी मन ललचाया है। गुरु भक्ति से होकर प्रेरित, रास्ता में छन्द बनाया है। गुणियों के सद्गुण गाने से, गुण सहज में आते हैं। मूर्ख को गुरु पण्डित बनावे, सफल मनोरथ पाते हैं ॥१९२।। रत्नप्रभसूरि थे गुण भूरि, महाजन संघ बनाया था । उपकेशपुर के कारण उनका, गच्छ उपकेश कहाया था ।। पाट परम्परा अतिशय धारी, नूतन जैन बनाये थे। उपकार उन्हों का है अति भारी, गुरुवर ने समझाये थे ।।१९३॥ लुप्त होता था गच्छ जिसको, गुरु ने फिर चमकाया है। रत्नविजय गुरुवर की श्राज्ञा, गच्छ उपकेश कहलाया है। ज्ञानसुंदर शुभ नाम अापका, ज्ञान प्रचार बढ़ाया है । उपकार कियाथा मुम पामर पें,मिथ्या मत से बचाया है १९४॥ संवत उन्नीसे साल पचाणु, कृष्ण तृतीया चैत्र मास । दीक्षा भूमि है नगर बीलाड़ा, सफल हुई है मन की आस । गुणसुंदर गुण गाये गुरु के, जनम सफल मनाया है । अनुमोदन कर पढ़ो पढ़ाओ, जिससे सुख सवाया है ।।१९५॥ "इति कवितामय आदर्शज्ञान समाप्तम् "
SR No.002447
Book TitleAadarsh Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1940
Total Pages734
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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