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________________ आगम पूजा खूब ठाठ से, आनंद खूष मनाया था । व्याख्यान का था ठाठ हमेशा, चौमासा जबर दिपाया था । दादाबाड़ी में समवसरण की, रचना रंग दिखाया था । चिंतामणि पार्श्व की प्रतिष्ठा, वरघोड़े हाथी श्राया था ॥१७९॥ वहां से चल कर आए कापरडे,इतिहास ग्रंथ बनाया था। जाना था अजमेर नगर को, बिच मे ब्यावर आया था। संघ श्राग्रह को मान देकर, चौमासा वहां ठाया था। गणेशमल कोठारी जिसने, सूत्र उच्छव मनाया था ॥१८॥ जैन जैनेत्तर भक्ति पूर्वक, जिन बाणि रस पीते थे । चंदरास की कथा रसीजी, सुन के मोह को जीते थे। राइली कंपान मैदान मजाका, पर्युषण वहां मनाया था । व्याख्यान की छबी कहूँ कहां लो, संघ को खूब सुहाया था ॥१८१॥ ब्यावर आए दर्शन कीना, वहां का ठाठ अनोखा था। • पूजा प्रभावना स्वामिवात्सल्य,भक्ति का यह मौका था। वहां से आप अजमेर पधारे, संघ सामने आया था । श्रीसंघ का था जहां उपासरा,वहां मंगलिक सुनाया था॥१८२॥ उपदेश आपका था झंडेली, सुनने को सब आते थे । शुद्धि संगठन और ऐक्यता, विषय सबको सुहाते थे। देवकरण के घर देरासरा, रत्न बिंब मनुहारी था । शान्ति स्नात्र पूजा पढ़ाई, उत्साह जनता में भारी था ॥१८३।। दांतों की बत्तीसी थी बंधानी, ग्रंथ छपाई होती थी। चतुर्मास की थी विनती, भक्ति की फिर न्योती थी। वहां से आये केसरगंज में, पल्लीवालों को बोध दिया। सराधनेहोकराये मांगलिया,अजमेरवालोंने लाभ लिया॥१८॥
SR No.002447
Book TitleAadarsh Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1940
Total Pages734
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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