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झूठा में फिर माणकचंदजी, अजमेर तनसुख आया था । वहां से ये पीसांगन में, व्याख्यान वहां सुनाया था ॥ वहां से मेड़ता तीर्थ फलोदी, वहां भी समदडिये आए थे । जवाना हो आए मूडवे, नगीने दर्श दिखाए थे || १७३ || सम्मेला का ठाठ अनोखा, नगर प्रवेश कराया था । उत्साह था श्री संघ का भारी मंडल हर्ष मनाया था । नंदीश्वर की अद्भुत रचना, स्टेशन उपर खूब बनी । देश देश के श्राए सज्जन गण, सेवा मंडल बजाई घनी ।। १७४ ॥ जन श्वेताम्बर और दिगम्बर, स्थानकवासी शामिल थे । अहा- हा अतिशय और कुशलता, भक्ति में वे एक दिल थे । आठ दिन के स्वामिवात्सल्य, शहर से महिलाएं आती थी । इंतजाम था खास मोटर का, भक्ति भोजन कर जाती थी || १७५ ॥ . चन्द्रप्रभ की हुई प्रतिष्ठा, वासक्षेप गुरुदेव ने दिया । रत्नप्रभसूरीश्वर के पादुका, गुरु मंदिर में स्थाप दिया || धर्मघोष एक हुए आचारज, सुरांणा जाति बनाई थी । बगेची में उनके पादुका, रख के भक्ति बजाई थी ।। १७६ ॥ फाल्गुन चौमास हुआ वहां पर, ठाठ व्याख्यान के लगते थे। उदार दिल से होती प्रभावना, भेद भाव दूर से भगते थे । वहां से आये नगर कुचेरे, खजवाना में प्रचार किया । -रूण नोके हरसाला गोठण, पीपाड़ आ उपदेश दिया || १७७ ॥ तीर्थ कापरडे करी शुभ यात्रा, सोजतसंघ वहां आया था। अति आह से मानी विनंती, चौमासा वहां ठाया था ॥ वकील थे वहां सम्पतराजजी, उच्छव खूब मनाया था । श्री भगवती निज मकान पर, भक्ते वरघोड़ा चढ़ाया था ।। १७८