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________________ भादर्श-ज्ञान-द्वितीय खण्ड ६०६ तो आचार्यों, पन्यापों, भने आधु-साध्वियों नो निंदा पुराण जेवो लागे छे, ज्ञानसुन्दरजी तमे गजब करो छो। ___मुनि०-हां, साहेब ! आ भरतक्षेत्र ना साधु-साध्वियों नो रिपोर्ट छे, अने आपणा मालक सीमंधर स्वामि ने त्यां मोकलवा माटे तैयार करवा माँ श्रावेल छ । सूरिजी-बस, आ तमारी विनती ने बंध करी लो नहों तो तमारो भविष्य सारो नथी समझी ले जो । हुँ तमने ठीक कहुँ छु । मुनि०-ठीक छे साहेबजी ! जे थयो ते तो थइ गयो हवे पछी उपयोग राखीश । सूरिजी-पास में फलोदी वाला संपतलालजी कोचर बैठे थे । सूरिजी ने कहा, संपतलाल आ मेमर नामा नो जेटलो खर्ची थयो छे ते अत्र थी मोकलावी आपो, असे त्यांची प्रेस कोपी मंगवीलो, ज्ञानसुँदरजी तमे पण बिना कारण शा माटे धमाल करो छो, केम संपतलाल हुँ ठीक कहुँ छै न ? ___ संपत-जी हाँ साहिब आपनो कहुवँ ठीक छै । मुनिक-आप शामाटे खचों मोकलवो छो ते तो बधो थइ जशे सूरिजी-बहु सारू त्यागे तमे करी श्राप जो। मु नश्री को तो विहार करना ही था, पांचवें दिन विहार कर सरखेज पधारे, सेलावास एवं फलौदी वाले कई लोग विहार में बहुत दूर तक पहुँचाने को आये। संपतलालजी ने कहा, गुरु महाराज ऐसी किताब लिखने की आपको क्या जरूरत पड़ी थी ? ___ मुनि०-मैंने गुजरात में दो वर्ष विहार कर के केवल सुना ही नहीं पर नजरों से साधुओं की खास बाल लीलाएं देखी तो मुझ से रहा नहीं गया कि वीर शासन की इन साधुओं ने क्या
SR No.002447
Book TitleAadarsh Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1940
Total Pages734
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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