SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 700
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६०५ सूजी और मेझरनामा श्चात् तीसरे दिन सूरिजी के साधुओं के साथ शहर में गये और सूरिजी का उपाश्रय तथा आपकी पुस्तकादि का संग्रह देखा तो आप चकित हो गये कि अहा-हा यह साधुपना क्या पर एक राज वैभव का सा ठाठ है । चतुर्थ दिन इधर तो मुनिश्री सूरिजी को बन्दन करने को गये, तथा वन्दन कर आप उदयविजयजी के पास बैठकर शास्त्रीय बातें कर रहे थे, उधर सूरिजी एक साधु को योग की क्रिया करवाते थे इतने में डाक आई. जिसमें जैन अखबार जो भावनगर से निकलता है वह भी शामिल था, उसको खोल कर सूरिजी ने देखा तो उसमें मेरनामा का सबसे पहिला फार्म था, सूरिजी ने उसको साधारण तौर पर देखा तो आपके क्रोध का पार नहीं रहा और जोर से आवाज दी कि, 'ज्ञानसुन्दरजी आम आओ,' मुनिश्री उठकर सूरिजी के पास गये, तो सूरिजी मारे क्रोध के नेत्रों को लाल कर कहने लगे: सूरिजी - अरे तमे आ शुं करो छो, ढूँढ़िया थी लड़ता लड़ता अमारे सुधी पहुँची गया न ? मुनि० - साहेब शुं थयो ? सूरिजी - श्ररे श्र शुं छे ? मुनि० - समझ गये कि मेकरनामा के कारण सूरिजी का शरीर मारे क्रोध के कांप उठा है, अतः यहाँ शान्ति और नम्रता रखना ही ठीक है । 'साहेब या तो सीमंधर स्वामी ने विनती पत्र लखेल छे ।' सूरिजी - पण विनती माँ भेटला विषय होय शाना, ? अने विनती माँ टला शास्त्रों ना प्रमाणो नी पण शुं जरूर होय, श्र
SR No.002447
Book TitleAadarsh Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1940
Total Pages734
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy