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________________ भादर्श - ज्ञान- द्वितीय खण्ड ५९८ योगी - मुनिश्री के सामने देखकर गुरु महाराज ने कहा, C मुनिजी, क्या करना है ? मुनिः - गुरुमहाराज की शुभ दृष्टि से सब कुछ अच्छा होगा । योगी :- तुमको बुलाया है । मुनि०- मेरे जाने से क्या होता है, वहाँ तो द्रव्य की आव 0 श्यकता है । मुनि योगी :- वह भी तो तुम जावोगे तब हो होगा। -मारवाड़ का हाल तो आप जानते ही हो । योगी० – पर मुझे विश्वास भी तो है कि तुम्हारे जाने से सत्र व्यवस्था ठीक हो जायगी । 18 मुनि० - गुरुमहाराज ! दूर का मामला है, मैं आपकी सेवा छोड़ना नहीं चहाता हूँ । योगी - मेरा काम करना भी तो मेरी सेवा ही है । मुनि० -- यह कार्य तो यहाँ रहने से भी हो सकेगा । यौगी - यदि यहां रहते हुए, होने योग्य कार्य्य होता तो मुनीम इतना जोर देकर नहीं लिखता । मुनि०- गुरुमहाराज ! मुख्य कार्य तो द्रव्य सहायता का है, और यह मारवाड़ में बन नहीं सकेगा; यदि बोर्डिङ्ग को स्थायी बनाना हो तो बंबई पधारो, वहां जैसे गुजराती लोग हैं वैसे मारबाड़ी लोग भी बहुत से पैसे पात्र हैं; अतः एक खासा फंड हा जायगा । अभी योगी० - अच्छा तुम इस समय तो मारवाड़ जाओ; मैं सुरत श्रर सुरत के आस पास विहार करूँगा । यदि इस वर्ष तुम वहां की व्यवस्था ठीक कर पाओ तो बंबई तुम्हारे लिए
SR No.002447
Book TitleAadarsh Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1940
Total Pages734
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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