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सूरत के श्रावको की विनती भी बढ़ गई। मुनीश्री ने इस तीर्थ की प्रसिद्धि के लिए परिश्रम भी बहुत उठाया था।
सुरत के भक्त लोगों ने आग्रह पूर्वक विनती की कि आप सब साधु कृपा कर सुरत पधारें, तथा दो वर्षों से बंबई के लिए भी हमारी बिनती है, आप जैसे निःस्पृही योगीराज के पधारने से बंबई की जनता को बहुत लाभ होगा, अतः हमारी विनती स्वीकार करावें। ____ योगीराज ने कहा कि सुरत का तो हमारा भाव है, बंबई दूर है इसलिए हम अभी नहीं कह सकते हैं । इस प्रकार बातें हो रही थी, कि इतने में डाक के कागज आये, जिस में एक पत्र श्रोसियां का भी था, जिसमें बोर्डिङ्ग का हाल लिख कर अन्त में लिखा था कि या तो आप पधारो अथवा ज्ञानसुन्दरजी महाराज को शीघ्रातिशीघ्र भेजो नहीं तो बोर्डिङ्ग उठ जायगा । कारण खर्चे का इन्तजाम नहीं है, नमीचंदजी पेढी से एक पैसा भी देने को इन्कार हैं, बोर्डिङ्ग में केवल १० लड़के रह गये हैं, अतः प्रार्थना है कि इस ओर लक्ष देकर आप मुनीश्री को शीघ्र भेज दिरावें,
और द्रव्य सहायता के लिए भी उपदेश दिरावें ताकि मारवाड़ में श्रापके हाथ का लगाया हुआ यह वृक्ष सूखता हुआ बच जावे, इत्यादि।
इस पत्र को पढ़कर गुरुमहाराज को बड़ा ही दुःख हुआ कि बड़े ही परिश्रम से स्थापन की हुई एक संस्था का यह हाल ! उपस्थित श्रावकों को पत्र बंचा कर उपदेश किया और उन लोगों ने कुछ रकम भेजने का वचन भी दिया ।
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