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आदर्श ज्ञान-द्वितीय खण्ड
थीं; दर्शनार्थ आने वालों ने मुनीश्री के उरदेश से पुस्तकें छपवाने में द्रव्य सहायता भी खूब खुल्ले दिल से दो यो ।
भंडारीजी चन्दनचंदजी जोधपुर वाले, तथा मेघराजजी मुनी. यत फलौदी वाले तो चतुर्मास उतरते ही आये थे।
जब जघड़िया का चतुर्मास समाप्त हुआ तो सुना गया कि गुरुमहाराज सीनोर से जघड़िया का संघ निकाल कर पधार रहे हैं, इस हालत में भंडारीजी, मेघराजजी और मुनीश्री ने गुरु महा. राज के सामने जाने के लिए विहार कर दिया । पर जो संघ तीन या चार दिनों में जघड़िया पहुँच सकता था उसे मार्ग में ही सात दिन लग गये; कारण रास्ते में जैन और जैनेतर लोगों ने बत हो भक्ति कर संघको र क दिया था क्यों कि उन ग्रामों के लोगों ने पहिले कभी संघ देखा ही नहीं था, तदुपरान्त गुरु महाराज का प्रकाण्ड प्रभाव; एवं व्याख्यान । फिरतो कहना हो क्या था ?
भंडारीजी ने जाकर गुरु महाराज के दर्शन कर लिए; मुनिश्री तथा मेघराजजी एक ग्राम में ठहर गये, जहाँ केवल तीन घर ही श्रावकों के थे । आपके ठहरने का कारण यह था कि आपका एक पुस्तक लिखनी थी और मेघराजजी का संयोग भी था।
जब गुरुमहाराज चातुर्विध श्री संघ के साथ पधारे तो मुनी. श्री वगैरहः सब साथ में होकर जघड़िये पधारे । संयोग वश उस दिन जघड़िया में सुरत के बहुत से लोग आये हुए थे; उन्होंने संघ को अत्यन्त हो आडम्बर एवं धूम धाम से बधाया। ___ मुनियों के पधारने से एवं मुनिश्री के चतुर्मास रहने से इस तीर्थ की बहुत दूर तक प्रसिद्धि हो गई और यात्रियों की संख्या