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________________ ५९५ मेझरनामा की विवस्था प्रति आपकी यह बड़ी से बड़ी सेवा समझी जायगी। महोपाध्याय जी श्री यशोविजयजी महाराज ने भी हुन्डी का स्तवन बनाया था, पर आपका मेमरनामा तो उससे भी बढ़ कर है कारण इसमें पृथक पृथक् विषयों को शास्त्रीय प्रमाणों के साथ खूब ही विस्तार से लिखा है । जब आप गुरु महाराज की सेवा में पधारे तो मेमरनामा भेंट किया गुरु महागज ने देखा और तुरन्त ही छपवाने की अाज्ञा देदी। योगीराज ने एक ऐसा ही विनती शतक बनाया था, पर वह अभी तक प्रकाशित नहीं हुआ था, तथा वह इस मेमरनामा में समावेश भी हो सकता था, अतः मेझरनामा को शीघ्र ही छपाने की आज्ञा देदी । यद्यपि मुनिश्री गुजराती में बोलते या व्याख्यान देते थे, तद्यपि मेझरनामा को साफ गुजराती में लिखने में आप सर्वथा सफल नहीं हुए, अतः कहीं २ मारवाड़ी शब्द का मिश्रण रहा ही गया जो आपकी मातृ भाषा का परिचायक है। बस, जघड़िया में प्रेस कापी तैयार कर भावनगर आनन्द प्रेस में छपने के लिए भेज दिया, जिसकी कुल ५००० प्रतिए छपवाने की थीं, उसमें १५०० तो पुस्तक के आकार में और ३५०० जैन पत्र के ग्राहकों को अखबार के साथ घर बैठों को बिना डाक व्यय के पहुँचा दी जाय, यह निश्चय जघड़िया में ही कर डाला था। - जघड़िया के चतुर्मास में यों तो आपके दर्शनार्थ बहुत से प्रामों के भक्त श्रावक आये थे; इसका कारण एक तो पहिले जघड़िया तीर्थ का दर्शन बहुत ही कम लोगों ने किया था, दूसरे श्रापका वहां बिराजना, तीसरे मारवाड़ी लोग बम्बई जावें तो जघडिया मार्ग में ही पड़ता है अतः आने वालों को सब तरह की सुविधाएं
SR No.002447
Book TitleAadarsh Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1940
Total Pages734
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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