SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 689
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आदर्श ज्ञान-द्वितीय खण्ड ५९४ विषय इस प्रकार संग्रह किया कि जिसको पढ़ने से साधारण मति वाला भी कर्मों के विषय का ज्ञान हांसिल कर सके । १००० प्रतिए शीघ्रबोध भाग छटे की इसमें नन्दी सूत्र से पांच ज्ञान का सविस्तर वर्णन कर अपने जनता के समक्ष एक आत्म कल्याण का साधन ही रख दिया । १००० प्रति शीघ्रबोध भाग सातवें की, इसको लिखकर तो आपने कमाल ही कर दिया, क्योंकि अनेक शास्त्रों का सार और सैंकड़ों प्रश्नों से विभूषीत यह भाग है, इसको पढ़ने से मुमुक्षुओं ज्ञान और तर्क शक्ति बढ़ जाती है । इसके विषय में यह कहना भी अतिशयोक्ति न होगा कि मन एकाग्र रखने का यह एक अपूर्व साधन है। १००० दश- वैकालिकसूत्र मूल पाठ इस छोटी सी पुस्तक साधु साध्वियाँ विहार के समय भी साथ में स्वाध्याय करने के लिए रख सकते हैं । मुनिश्री ने गुजरात में विहार कर वहाँ के साधु साध्वियों का ही नहीं अपितु बड़े २ आचार्यों पन्यासों का हाल देखा जिससे आपका हृदय व्याकुल हो गया था । सुरत में श्रीसीमंधर परमात्मा की सेवा में भारत के समाचार भेजने के लिए कागज, हुन्डी, पैठ, पर पैठ और मेकर नामा को रचना शुरु की तथा श्रीसिद्धक्षेत्र में उसको सम्पूर्ण भी कर दिया था, किन्तु गुरु महाराज की आज्ञा के बिना उसे छपवाना आपने ठीक नहीं समझा। उस मेझरनामा को माणकमुनिजी, लब्धिमुनिजी, विनयविजयजी, तिलक विजयजी आदि कई साधुओं ने देखा था और उन्होंने सम्मति भी दे दी थी कि इसको छपवा देने से बहुत ही जागृति होगी, तथा शासन के
SR No.002447
Book TitleAadarsh Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1940
Total Pages734
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy