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________________ ५९३ जघड़िये में पुस्तकों का प्रचार १५ दिन ठहरी आपके पण्डिा के लिए भी दो मास की तनख्वाह सेठानीजी ने दी बाद बम्बई चली गई। ___ जघड़िया में मुनिश्री ने तपस्या भी खूब को, एकान्तर तो हमेशा चालु ही था, एक अट्टाई एक पाचोला, आठ तेला वगैरह कई छटकर तपस्या की थी तीर्थ स्थान पर रहने का यही तो भानंद है कि मनमाना ज्ञानाभ्यास और तप हो सकता है । ___पर्युषणों के बाद शेष रहे हुए दिनों में आपके इतना ज्ञानाभ्या । नहीं हुआ, जितना की पहिले हुआ था। इसका कारण, एक तो यहाँ पर्युषणों का महोत्सव हो जाने से आस पास के ग्रामों में सर्वत्र प्रसिद्ध हो गये, दुसरे श्रोलियों का आराधन करने को सी बहुत लोग आ गये अतः व्याख्यानादि में समय चला जाता था, तीसरे पुस्तकें छपवान में प्रेस कापी बनाना, प्रूफ संशोधन करना इत्यादि कार्यों में विशेष समय खर्च हो जाता था, तथापि संस्कृत मार्गो पदेशिका के दूसरे भाग के १८ पाठ आपने कर लिए थे। जघड़िये के चतुर्मास में दो भाई दीक्षा लेने वाले भी आये थे पर मुनिश्री ने उनका सीनोर गुरु महाराज के पास भेज दिये थे और गुरु महाराज ने उनको अनुत्तीर्ण ( ना पास ) कर कोरा जबाब दे दिया । धन्य है ऐसे निस्पृही महात्मा को। ____इस चतुर्मास में आपश्री की और से निम्न लिखित पुस्तकें प्रकाशित हुई जो खास आपने ही लिखी थीं। १००० प्रतिए शीघबोध भाग चौथे का जिसमें साधुओं के करने योग्य शास्त्रीय विधान का खूब ही अच्छा संग्रह किया था, जो कि प्रत्येक साधु साध्वी के पढ़ने योग्य है। १००० प्रतिए शीघ्रबोध भाग पांचवें की, इसमें कों की
SR No.002447
Book TitleAadarsh Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1940
Total Pages734
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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