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________________ पर्युषणों का अजब ठाठ सावत्सरिक प्रतिक्रमण पोषध और दूसरे दिन पोषध के पारणे तथा दोनों बख्त के स्वामिवात्सल्य हुए, बाद सब लोग आनंद मंगल मानते हुए अपने २ स्थान पर गये । जघड़िया में यह पहले ही पहल चतुर्मास होने से जैनेत्तर लोगों पर भी अच्छा प्रभाव पड़ा और धर्म की खूब उन्नति हुई । जघड़िये के वर्तमान हाल जब गुरुमहाराज के पास पहुंचे तो आपके हर्ष का पार नहीं रहा तथा आपके पास में रहने वाले साधुणों को कहा, देखो मुनिजी कैसे भाग्यशाली हैं; जंगल में भी मंगल कर देते हैं। __पर्युषणों के बाद बंबई से बाबू जीवनलालजो सपत्न, एवं नौकर, रसोईया को साथ लेकर जघड़िये आये, कारण उनकी तबियत ठीक नहीं थी, अतः उन्होंने यह सोचा कि यात्रा भी हो जायगो और आबहवा का बदला भी हो जायगा । यह प्रसिद्ध सेठ पन्नालाल पूनमचंद की फर्म के मालिक थे, इनके पिता का देहान्त हुआ था तब आठ लाख रूपये ज्ञान-प्रचार के लिए निकाले थे, जिसकी बम्बई में हाईस्कूल चलती है, अतः पेडी के मुनीम को आशा होना स्वभाविक ही, था कि ऐसा भारी सेठ पाया है तो हमारी धर्मशाला का काम अधूग है, अर्थात् पांच हजार रुपैयों का काम शेष रहा है, उसके लिए घर २ मीख न मांग कर एक ही करोड़पति सेठ की ओर से मिल जाय तो अच्छा है । अतः मुनीम ने मुनिश्री को अर्ज करो और मुनिजी ने कहा कि ठीक है, अवसर होगा तो मैं उपदेश करूँगा। __जब बाबू साहब मुनिश्री के पास आये तो पहिले उन्होंने अपना हाल मुनिश्री को सुनाना शुरु किया कि साहिब में इतना
SR No.002447
Book TitleAadarsh Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1940
Total Pages734
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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