SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 685
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आदर्श-ज्ञान द्वितीय खण्ड ५९० त्रिस्टी०-हाँ साहिब आपका कहना पूर्ण सत्य है ! यह हमारी बड़ी भारी भूल हुई है, पर आज तो हमें यह शिक्षा मिल गई है कि अब हम भविष्य में ऐसी गली कभी नहीं करेंगे, किन्तु आप की डाँक एवं पुस्तकों के लिए आज्ञा फरमाइये कि अब सब खर्चा यहाँ को पेढी से ही हो। मुनि०-डाक, पुस्तकें, पंडित की तनख्वाह इत्यादि का सब प्रब. न्ध सुरत वालों ने कर दिया है, अतः हमें कोई आवश्यकता नहीं है। त्रिस्टी०-साहिब सुरत वाले तो भाग्यशाली हैं, उनको तो हमेशा लाभ मिलता हो रहता है, पर हम लोगों को ऐसा अवसर कब मिलने वाला है । इस जघड़िया तीर्थ पर तो सर्वप्रथम श्राप का ही चतुर्मासा हुआ है, अत: हम आग्रहपूर्वक प्रार्थना करते हैं कि जो हुआ सो हुआ, पर अब तो यह सब लाभ हमको ही मिलना चाहिये। मुनि:-आपको तो यह लाभ मिलेगा कि यहां स्वप्ना पालना की श्रामंद जो श्रावेगी वह तुम्हारी पेढी में जमा होगी। त्रिस्टी०-यह तो आप साहिब की कृपा है, पर हमारी विनती को भी आप स्वीकार करो नहीं तो हमें दुःख होगा। मुनि-तुम दुःख क्यों करते हो ? यहाँ तो पेढी , द्रव्य किसी भी काम में श्रा सकेगा, यदि आपका इतना ही आग्रह है तो अवसर देखा जायगा। जघड़िया में पर्युषणों का बड़ा ही ठाठ रहा, हमेशा स्वामिवात्सल्य, तीनों समय प्रभावनाए, रात्रि में प्रभुःभक्ति होती थी, तथा स्वप्नों की बोली के तथा साधारण में रुपये आये थेबेसब खर्चा बाद करके पेढी में जमा करवा दिए।
SR No.002447
Book TitleAadarsh Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1940
Total Pages734
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy