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________________ ५८९ जड़िया के त्रिस्टियों की माफि श्राविकाएं थे, इसमें जघड़िया तीर्थ की पेढी के मेम्बर लोग भी शामिल थे, उन्होंने अपने मन में बहुत पश्चाताप किया कि अपन लोग तो यह ही समझ बैठे थे कि कोई ऐसा ही मारवाड़ीअकेला साधु होगा, पर यह साधु तो बड़ा ही जबर्दस्त, एवं प्रभावशाली तथा विद्वान है, अब अपन लोग जाकर मुंह कैसे दिखावें, फिर भी वे दोपहर को एकान्त में आकर मुनिश्री से मिले और कहने लगे कि साहिबजी हमारी बड़ी भारी भूल हुई कि आप जैसे मुनिराज का यहाँ बिराजना होते हुए भी हम हतभाग्य कुछ भी लाभ नहीं उठा सक, हम यहाँ कई दफे आये पर अज्ञानतावश हम आपकी कुछ भी सेवा नहीं कर सके । साहिब यहाँ पेढी में ज्ञान खता की रकम जमा है, आपके डाक एवं पुस्तकों में काम में आवे तो मुनीम को कह देना, वह पेढो की ओर से प्रबन्ध कर देगा । और आप हमारे अपराध को क्षमा करावें । मुनि०-श्रावको ! हमारे पास हुकूमत या पुलिस नहीं है कि हम आप लोगों के कसर के लिए आप पर जोर-जुल्म करें । हमने यहाँ चतुर्मास किया था उसके लिए सब तरह का प्रबन्ध सुरत वालों ने पहले से ही कर दिया था, किन्तु दुःख इसी बात का है कि तुम यहाँ आये और जैन होते हुए भी जैन साधु से मिले तक भी नहीं, यह कितनी अफसोस की बात है । खैर, मेरे लिए तो कुछ नहीं पर विचारा कोई साधारण साधु आकर एकानिवृति का स्थान देख ठहर गया होता तो उसका क्या हाल होता ? स्मरण में रहे कि तीर्थ की स्थापना उनकी उन्नति पेढी और पैसा साधुओं के उपदेश से ही हुआ और होता है जिन्हों के लिये आपकी इतनी बेपरवाही, क्या यह कम अफसोस की बात है ?
SR No.002447
Book TitleAadarsh Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1940
Total Pages734
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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