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________________ आदर्श ज्ञान-द्वितीयखण्ड ५८६ वापिस लौट कर जघड़िये पधार गये और उस निवृति के स्थान पर पण्डितजी के पास ज्ञानाभ्यास में लग गये।। जघड़िया की पेढी पर एक वृद्ध ब्राह्मण मुनीम था, जब उस. को मालूम हुआ कि मुनिश्री ने यहां चतुर्मास करने का निर्णय कर लिया है, अतः मुनीम विचार में पड़ गया क्योंकि यहां श्रावकों के तो केवल ३ घर है और वे भी साधारण स्थिति के, और चतुर्मास में यहाँ अधिक यात्री लोग भी नहीं आते हैं, पहिले कभी जैन साधुओं का चतुर्मास यहां हुआ भी नहीं है, इनका चतुर्मास कैसे होता है ? क्या क्या बातों की आवश्यकता रहती है ? मैं इन सब बातों से अनभिज्ञ हूँ, और न मुझे पूछा भी है, फिर समझ में नहीं आता कि यहां चतुर्मास कैसे करते होंगे ? ___ मुनीम ने यहां के ट्रिस्टियों को जो अंकलेसर वगैरह पास के प्रामों के थे, खबर दी । वे जघड़िये आये, मुनीम से बात चीत की जिसका आशय यह था कि मुनिजी यहां चतुर्मास न करें तो अच्छा है,पर वे ट्रिस्टी लोग मुनिश्री के पास तक नहीं आये और मुनीम से मिला कर वापिस चले गये। गुजराती लोगों का एवं ट्रिस्टी जैनों का यह हाल है कि तीर्थ पर आना और मुनियों के दर्शन तक भी नहीं करना, यह कैसी श्रद्धा ? खैर कुछ भी हो, मुनिश्री ने तो दुःख सुख की परवाह न करके अपने निर्णयानुसार जघड़िया में चतुर्मास कर ही डाला। बस उस निर्वृति के स्थान में रह कर पर्युषण पहिले ही संस्कृ. त मार्गोपदेशिका का प्रथम भाग समाप्त कर लिया। गांव में तीन घर मारवाड़ी श्रावकों के थे, वे साधारण स्थिति वाले होने पर भी अच्छे भक्ति वाले थे। वे समझते थे कि हमारा अहोभाग्य है कि
SR No.002447
Book TitleAadarsh Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1940
Total Pages734
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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