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________________ ५८५ सरत के श्रावकों की भक्ति पंडित वगैरह का साधन कर देना। श्रावकों ने कहा कि पंडित वगैरह का सब प्रबन्ध हम लोग स्वयम् कर लेवेंगे, और भी कुछ हुक्म फरमावें । योगीराज ने कहा, बस आत्म-कल्याण करना, और दूसरी बात क्या कहनी है ? ____ योगीराज का सुरत के लोगों पर काफी प्रभाव हो गया था, वे बम्बई जाते समय यदि आसपास में गुरु महाराज होते तो आपका वासक्षेप ले कर जाते थे; क्योंकि आपके चारित्र, विशुद्धता, निस्पृहता और योगबल पर विश्वास कर लोग भापके पक्के भक्त बन गये थे। आपके चमत्कार के २-४ ऐसे उदाहरण बन चुके थे कि उन लोगों को पूर्ण विश्वास बंध गया था कि योगीराज एक चमत्कारी महात्मा हैं जिससे आस-कल्याण के साथ इस भव में भी अनेक फायदे हो सकते हैं। - सुरत के भक्त लोग सुरत जाकर उसी मनसुखराम शास्त्री को तथा चतुर्मास के योग्य कपड़ा वगैरह सब के सब आवश्यक पदार्थ साथ लेकर गुरु महाराज की विद्यमानता में ही जघडिये आगये, कपड़े वगैरह की आमन्त्रणा की, मुनियों को जितना आवश्यक था उतना वेहर लिया । श्रावकों ने पण्डित को कोई दो सौ रुपये इस आशय से दे दिये कि यहाँ पुस्तक टीपालादि चिट्ठी पत्री श्रादि में जो कुछ खर्च हो वह खुशी से करे । सुरत के लोग अभी जघड़िये ही थे कि इतने में तो सीनोर के लोग गुरु महाराज को लेने को आगये । गुरु महाराज ने विहार किया तो मुनिश्री व सुरत के श्रावक एक मंजिल तक पहुँचाने गए, बाद गुरु महाराज ने सिनोर की ओर विहार किया और मुनिश्री
SR No.002447
Book TitleAadarsh Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1940
Total Pages734
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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