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'पाली श्रीसंघ की थी श्राग्रह, पूज्य तेरह पन्थी आते हैं। दोनों समुदाय में नहीं हैं साधु, मिथ्या भ्रम फैलाते हैं। कार्तिक पूनम कोरंट यात्रा, संघ साथ में कोनी थी। जाना था मुम को सिद्धाचल, गुरु आज्ञा दे दीनी थी ॥१६१॥
सिरोही आबू और पालनपुर, सिद्धपुर फिर म्हेसाना था। भोयणी पानसर करी यात्रा, अहमदाबाद को जानाथा ।। माणकलाल का संघ ठाठ से, देख दिल हरपाया था ।
लुंबा माली था साथ हमारे, साधु समागम पाया था ॥१६२।। सरखेज होकर आये धंधुके. वल्लभी यात्रा कीनी थी। सिहोर हो फिर आये सिद्धाचल, चैतन बधाई दीनी थी । जन्म सफल यात्रा से कीना, श्रानंद खूब मनाया था । कृपा थी गुरुवर की अनहद, सेठ मुलतान वहां आया था ॥१६॥
छोड़ा नहीं गया सिद्धाचल, फिर भी गुरु में जाना था। . दश दिन तक करी यात्रा मुक्ति पट्टा लिखना था । विहार किया जब सिद्धगिरि से, हर्ष रंज दो आया था।
उसी रास्ता से आया वापिस, गर्भावास मिटाया था ॥१६॥ कोरंटा से गुरु पाली पधारे, स्वागत खूब बनाये थे। उपदेश दिया था दया दान का, सज्जन सब हर्षाये थे। था पब्लिक व्याख्यान आपका, राजप्रश्नी सूत्र सार । विषय था मूर्तिपूजा का, सुनते थे सब ही नर नार ॥१६५॥
प्रश्नोत्तर होते थे व्याख्यान में, पन्थी भी कई आते थे। सूत्र पाठ और तर्क युक्ति से, निरुत्तर हो जाते थे। पूज्य पोटले बन्ध रवाने, गुप चुप से वे किया बिहार । विजय झंड फहराय दिया था,दया दान का हुआ प्रचार ॥१६६॥