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पूर्व गुरु थे मोड़ीरामजी, उनका चौमासा फलोदी था। प्रेम भाव से गये मिलने को, गुण के वह अनुमोदी था । नंदीश्वर की रचना उनको, साथ जा कर दिखाया था । जैसे लिखा था सूत्र पाठ में, प्रत्यक्ष यह बतलाया था ।१५५।।
अहमदाबाद का संघ आया वहां, दर्शन अपूर्व पाया था। अनुमोदन कर पुन्य बढ़ाया, हर्ष हृदय नही माया था । कई प्रामों के आये भक्तगण, भक्ति कानुगों कोनी थी।
भेद रहा नहीं किसी बात का, उदार प्रभावना दीनी थी ॥१५६।। चैत्य महापूजा संघ की ओर से, वासक्षेप गुरु देते थे। भूल गये सब भेद गच्छों के, शिर झुका कर लेते थे। खूब दिपाया चतुर्मास को, यशः का डंका बजाया था। खीचन्द पूजा स्वामि वात्सल्य, वहां से विहार कराया था ।।१५७॥
लोहावट ओसिया जोधाणे पाली, पंचतीथी मन भाई थी। करके यात्रा आये सादड़ी, श्रोलियां वहाँ मनाई थी। वहां से क्रमशः आए शिवगंज,जवाल प्रतिष्ठा भारी थी।
नेमिसूरीश्वर के कर दर्शन, धर्म प्रीती विस्तारी थी । १५८॥ शिवगंज संघ की मानी विनती, चौमासा यहां करना था।
आग्रह ज्ञान पीपासुओं की, सूत्र भगवती पढ़ना था। फोजमल ने महोत्सव कीना, जबर जुलूस विशाला था। पूजा प्रभावना रात्रि जागरण, उच्छव एक निराला था ॥१५९।।
उदारता से की आगम पूजा, रुपये सात सौ आये थे। उस द्रव्य से छपी पुस्तकें, ज्ञान प्रचार बढ़ाये थे। नरनारी सब मिल के तीन सौ, समकित का विधान किया। मोसवालों के जाय पाटिये,गुरु आज्ञा से व्याख्यान दिया।।१६०॥