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सौभागमलजी थे गुलेच्छा, मन मुठ मुनिवर से
गई पर घर से भाव दर्शाया
पून्य उदय परिणामों की धार, बदल हुआ आपस में खमदखामणा, स्नेह सज्जन सुनकर सज्जनता का, धन्यवाद वरसाया था ॥१४९॥ इस संघ में थी यह अधिकता, खर्च सब संघपति का था । सर्व सामग्री करी एकत्र, हुकम जो गुरुवर का था ॥
सौ गाड़ियों ऊंट दोय सौ, पांच हजार नर नारी थे । सौ साधु साध्वियों संघ में, देरासर अधिकारी थे ।। १५० ।। जैसलमेर लौद्रवा तीर्थ की, संघ यात्रा कर आये थे । केसरिया पेंचा श्रीसंघ को, संघपति ने बंधवाये थे || गाजा बाजा से हुआ सम्मेला, यशः जगत में छाया था ।
कृपा थी गुरुवर की उन पर, नर नारी गुण गाया था ।। १५१ ।। जाना था कापरड़े आपको, संघ मिलकर आग्रह करी ॥ फलोदी में करना चौमासा, लाभालाभ को दिल में धरी । ग्रीष्मऋतु में ये कापरड़े, विद्यालय को सम्भाला था || ari से चलकर आये फलोदी, अपने वचन को पाला था ।। १५२ ॥ श्री भगवती सूत्र व्याख्यान में, आनंद रंग बरसाया था । पर्युषणों का ठाठ अपूर्व, जन मन सब हरषाया था । सूरजमलजी ने धर्मशाला में सुंदर हाल बनाया था । नंदीश्वर की रचना कारण, दिल सब का ललचाया था ।। १५३॥ फिर तो थी क्या देरी काम में, साधन शीघ्र बनाये थे ।
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जनगिरि दधिमुखा कनकगिरी, बिच में मेरु दिखाये थे | गुत्तर थे मंदिर उन पर, चौमुख जिन पधराया था । ठाठ महोत्सब का था अपूर्व, भक्ति रंग बरसाया था ।। १५४ ||
थी ।
था ।