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वीसलपुर और पालासणी के, मंदिरों की आशात मिटाई थी । आये चल कर और कापरड़े, विद्यालय नीव जमाई थी । चौमासा कर दिया कापरड़े, व्यवस्था कर पाये थे। पर्युषणों के कारण वहाँ पर, नरनारी तीन सौ आये थे ॥१४॥
फलोदी के थे पाँचूलालजी जैसाणे संघ ले जाना था । सम्मति कारण आये कापरड़े, हुकम गुरु का पाना था । उपदेश दिया था विद्यालय का, विशाल भवन बनाया था।
संघ फलोदी आया दुबारे, उनका हुकम उठाया था ॥१४॥ पत्र लिखा सूरि वल्लभ को, संघ के साथ पठाया था। जाय सादड़ी करी विनती, मन्जूरी हुकम फरमाया था । चम्पालाल और गजमलजी, पुनः कापरड़े आये थे । विहार किया गुरुवर ने वहाँ से, वीसलपुर साथ में आये थे ।।१४५॥
जोधपुर फिर पाँचूलालजी, श्रोसियाँ चम्पा आया था। - लोहावट में हुआ सम्मेला, सागर आनन्द पाया था ।
एक तख्त पर व्याख्यान दोनों का, संघ को खूब सुहाया था।
फलोदी से समुदाय मिलकर गुरु दर्शन को पाया था ॥१४६॥ वहाँ से चलकर चीले पधारे. मैं भी जाकर दर्श किया। फलोदी के बहु नर नारी, गुरु दर्शन का लाभ लिया । स्वामि वात्सल्य सङ्घ पति का, तैयारी सबी सुखकारी थी। फलोदी नगर में सम्मेला की, खूब हो रही तैयारी थी ॥१४७॥
दश वर्षों से गुरुराज पधारे, दिल किसका नहीं चाहता था। सम्मेला काठाठ अजब था, नर नारी मंगल गाता था ।। विजयवल्लभ सूरीश्वर आये, उच्छव खूब मनाया था । आमन्त्रण पाके संघ पाया, अहा-हा ठाठ सवाया था ॥१४८॥