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________________ भादर्श-ज्ञान-द्वितीय खण्ड ५६४ जोर हो गया था और यह भी सोचा कि गिरनार की यात्रा रह जायगी तो श्री सिद्धगिरि की फिर दुबारा यात्रा हो जायगी, अतः इस प्रकार शरीर की लाचारी के कारण विहार कर गुरु महाराज के पास या गुरु आज्ञा से मारवाड़ जाना ही आपने अच्छा समझा था । क्षमासागरजी, वल्लभसागरजी ये दोनों गुरु शिष्य अच्छे सुशील और क्रियापात्र साधु थे, क्षमासागरजी को ज्ञान पढ़ने को भी अच्छी रुचि थी। मुनिश्री के पास रात्रि में चार चार घंटा रह कर ज्ञानाभ्यास करते थे और आपकी इच्छा थी कि एक दो चतुर्मास भी मुनिश्री के पास करूं तो शास्त्रों का अच्छा अभ्यास हो जाय। मुनिश्री ने अपना शरीर के कारण विहार करने का निश्चय कर लिया तब क्षमासागरजी ने सोचा कि यहाँ तो हरिसागरजी का यह हाल है अधिक रहने से इसके साथ मेरा भी नाम बदनाम होगा अतः मुनिश्री के साथ मारवाड़ जाकर एक दो चतुर्मास आपके साथ कर सूत्रों का अध्यन करना उचित है । अतः मुनिश्री से प्रार्थना की कि यदि आप मारवाड़ पधारें तो हम लोग भी आपकी सेवा में साथ चलना चाहते हैं ? मुनिश्री ने कहा बहुत खुशी की बात है, जहाँ तक बन सका में आपको शास्त्रों की बंचना और ज्ञान देता रहूँगा । साथ में आपसे मैं यह भी कह देता हूँ कि आपको इस हरिसागरजी के साथ में भी नहीं रहना चाहिये इसका कारण श्राप जानते ही हैं इत्यादि । अगर हरिसागर को आप साथ में रखोंगे तो मेरे पास में आपका निर्वाह नहीं होगा। ___ जब क्षमासागरजी वल्लभसागरजी मुनिश्री के साथ चलने को तैयार हो गये तो हरिसागरजी वहाँ कब रहने वाले थे ? वे भी
SR No.002447
Book TitleAadarsh Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1940
Total Pages734
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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