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________________ श्री सिद्धिगिरि को यात्रा क्षमा०-बीकानेर की औरतों के साथ एक रसोईदार है वह रसोई बना कर तलेटी पर ले जाता है वहाँ साध्वियों बाइयों और हरिसागरजी अहार-पानी कर लेते हैं बाद यहाँ आते हैं। मुनिश्री क्षमासागरजी से और भी बातें होने से ज्ञात हुआ कि हरिसागर पतित प्राचार वाला नाम मात्र कासाधु है और यह लोग साधुओं के लिये बनाया हुआ तथा सामने लाया हुआ इतना ही क्यों पर साध्वियों का लाया हुआ आहार-पानी भी साधु कर लेते हैं, अधिक ठहर ने से आर क्या देखते हैं कि कभी २ तो आहार पानी करते समय बीकानेर की विधवा या जाती थी तब हरिसागर श्राहार पानी छोड़ कर उसके पास बैठ कर एकान्त में गुप्त बातें करने लग जाता था; इसका कारण कदाचित् यह हो सकता है कि हरिसागर जाति का जाट है, छप्पना के दुकाल में जब यह चार वर्ष का था तब ढाई रुपयों का धान देकर इसे मूल्य लिया था, अतः यह बिचाग जैन दीक्षा में क्या समझे ? और इसको बिना दीक्षा इस प्रकार के साधन कब हाथ लगने का था। खैर इस विषय में मैं यहाँ अधिक लिखना अप्रासंगिक समझता हूँ; दूसरे जैसी गति वैसी मति आया ही करती है। हमारे चरित्रनायकजी निरन्तर २० दिन तक यात्रा का आनन्द लूटते ही रहे, पर बाद में आपको जोर से बुखार आने लग गया, इससे यात्रा करना बन्द हो गया और पहिले आपका विचार गिरनारजी की यात्रा करने का था पर वह भी फिलहाल स्थगित रखा। दूसरा एक यह भी कारण था कि आपका शरीर बहुत कम
SR No.002447
Book TitleAadarsh Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1940
Total Pages734
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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