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________________ आदर्श - ज्ञान-द्वितीय खण्ड ( २ ) मध्यम में - मध्यम क्षयोपसम समकित । ३ - उत्कृष्ट में: - क्षायक समकित । शासन पर प्रस्तुत रागपण दर्शनाराधना नुं कारण थाय छे, जेओ शासन पर राग तेवी दर्शनाराधना थाय छे । कुँवर० - शँ शासन पर राग राखवाथी पण दर्शनाराधना थई सके छे ? मुनि० - आपणे कारण थी कार्य मानिये छिए तो शासन पर राग ते कारण अने ते रागथी दर्शन प्राप्त थाय ते कार्य, श्र तो आप जाणो छो के वैराग्य, राग थीज थाय छे, राग न होय तो वैराग्य थायज नहीं | कुँवर०—- केम ? G ५५० मुनि० - राग कारण श्रने वैराग्य कार्य, केम के आपणे राग बे प्रकार वो मानिये छिए ( १ ) प्रशस्त ( २ ) अप्रशस्त, देव गुरु धर्म ऊपर प्रशस्त राग थाय त्यारे दर्शन नी रुचि जागे छे, के देव गुरु धर्म की उपासना करू ने जो उपासना करे छे, त्यारे वैराग्य थाय छे । टले राग थी ज वैराग्य थयो । कुँवर०- - साहब श्रापनी युक्ति बहु प्रबल अने प्रमाणिक छे । मुनि० - हवे चारित्र आराधनाना पण तीन भेद छे१ - जघन्यः -- सामयिकादि चारित्र, - मध्यमः - पड़िहार विशुद्ध व सूक्ष्म संपराय चारित्र । ३ - उत्कृष्टः - यथाख्यात चारित्र । आ मां पण चारित्र नो खप करवो ते जघन्य, मध्यम भने P उत्कृष्ट खप ने अनुसार चारित्रनी आराधना थाय छे । कुँवर - सूक्ष्म संपराय चारित्र नो शुद्ध अर्थ थाय छे ? J
SR No.002447
Book TitleAadarsh Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1940
Total Pages734
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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