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भाराधना के प्रश्नोत्तर
करूंछु अने आराधना पण तेनी ज होय छे, अने अध्यवसाय. रूप जो चारित्र छे ते सिद्धों मां पण होय छ।
कुँवर०-आराधना माटे कहो साहिब के जघन्य, मध्यम अने उत्कृष्टी आराधना कौने कहवाय ?
मुनि०-शान आराधना ना तीन भेद छे। (१) जघन्य- अष्ट प्रवचन माता नो ज्ञान भणj । (२) मध्यम-एकदशांग ज्ञान भणओ। (३) उत्कृष्ट-द्वादशांग नो पारगामी थाओ। अभ्यास ने माटे एम पण कहवाय छे के(१) साधारण ज्ञान नो अभ्यास करवू ते जघन्याराधना । (२) मध्यम कोटिनो अभ्यास ते मध्यम आराधना । (३) उत्कृष्ट अभ्यास ते उत्कृष्टी आराधना।
कुँवरजी-कोई मनुष्य उत्कृष्ट ज्ञानाभ्यास करे छे, पण ते ने ज्ञान चढतो ज नथी, तेने उत्कृष्ट आराधना कही सकाय खरूं ? :
मुनि०–हां उत्कृष्ट अभ्यास करे छे पण ज्ञानावर्णी कर्मोदय तेने कदाच ज्ञान नहीं पण चढतो होय तो पण उत्कृष्ट आराधना कही सकाय, कारण उ०ज्ञानाभ्यास सजड़ ज्ञानावर्णीय कर्म ने पण तोड़ी नाके छे-आ भव मां, चाहे परभव मां केवल ज्ञान थइ जाय छ। तिसक मुनि नो अधिकार तमे सांभलियो छे के तेओने बार वर्ष सुदि परिश्रम करवा छतां एक पद पण नथी श्राव्यो पण ते केवल ज्ञान लइ लीधो, आ उत्कृष्ट अभ्यासनु ज कारण छ।
कुँवरजी-हां साहेब, बात खरी छे।। मुनि-दर्शनाराधना ना पण तीन भेद छे(१) जघन्य-जघन्य क्षयोपसम समकित ।