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________________ कुंवरजी माई के प्रश्नोतर ___ मुनि-क्रिया बे प्रकारनी होय छे, एक संपराय अने. बीजी इयांवाही । कषाय अने योग एवं बेने थी क्रिया लागे तेने संपराय क्रिया कहवाय छे, अने केवल येगो थी लागे सेने इर्यावही क्रिया कहे छे, पहिला गुणस्थान थी दसवा गु० सुधी संपराय क्रिया लागे, पर दसवां गु० मां केवल संजल नो लाभ रहवा थी, त्यां संपराय क्रिया तो खरी पण ते सूक्ष्म होवाथी आगुणस्थान नो नाम सूक्ष्मसंपराय छे, अने ते गुणस्थान वालाना चारित्र नो नाम पण सूक्ष्मसंपराय चारित्र छ। - ऊपर बतावेली आराधना माटे एम पण कहेलो छ के जघन्य ज्ञान दर्शन चारित्र आराधना वालो उत्कृष्ट पन्दर भवः करी मोक्ष जाय छे, मध्यम ज्ञान दर्शन चारित्र आराधना वाला तीन भव करी मोक्ष जाय अने उत्कृष्टी आराधना वाला ते भवमांज मोक्ष जाय छे । ___ मुनि०-आपणे मनुष्य जन्मादि उत्तम सामग्री मली गई छे तो श्रोलामा ओछी जघन्य आराधना तो करवीज जोइये । ___ कुंवर०-हाँ साहेब आपनो कहq बराबर ठीक छे पण आ पंचम काल मां आराधना थावी मुश्किल छ न ? मुनि -त्यारे जिनेश्वर देवना शासन D आलंबन करवानो सार नकल्यो जो जघन्य अाराधना पण न थाय तो आबधीमापणी धर्म करणी श्रावकपणो अने साधुपणो, वाणियानी दुकानज कहवाय न ? ____ कुँवर०-हाँ साहेब आप साँची २ कहो छो-आपना दशननी तो घणा काल थी अभिलाषा हती पण आज अमारे शुभ कर्मना उदय थी आपना दर्शन थई गया, अने साहिबजी आप तो जेम
SR No.002447
Book TitleAadarsh Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1940
Total Pages734
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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