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________________ आदर्श - ज्ञान - द्वितीय खण्ड ५४६ ने ऊपर जा कर साधुओं से कहा, हम यहाँ ठहरते हैं, आपकी आज्ञा है न ? साधुओं ने टूटता जवाब दिया कि 'अत्र जगहा नथी, जाओ बीजे स्थानक मां उतरो, जाओ।' बस, हताश होकर लब्धिमुनिजी लौट आये और कहा कि यहाँ तो ठहरने की आज्ञा नहीं देते हैं, चलो दूसरी जगह निगाह करें। पांच कोस से थके हुए मुनियों को उतरने को स्थान तक साधुओं ने नहीं दिया। जब मुनिश्री ने ऊपर जाकर साधुओं से प्रार्थना की कि आप तो ऊपर ठहरे हुए हैं, नीचे सब मकान खाली पड़ा है, यदि नीचे के मकान में हम ठहर जावें तो आपको क्या नुक्सान है ? हम भी तो साधु ही हैं, थके हुए आये हैं अतः आप हुक्म फरमावें । साधुओं ने कहा कि 'कही दीन्धु न अत्र जग्यांनथी; जाओ तमे, बीजी जग्या मां उतरो ।' मुनि - यह मारवाड़ी बंडा तो मारवाड़ी साधुओं के ठहरने के लिए है, अतः हम तो यहीं ठहरेंगे, आप यहाँ से अन्य स्थान चले जाओ, आप गुजराती साधुओं का इस मारवाड़ी बंडामें हक़ ही क्या है; निकलो बाहर "ठीक दुनियां की रीति है कि मृत्यु ब-तलाने पर ही ताव स्वीकार करती है ?" साधु - शुं तमे मारवाड़ी को ? मुनि - हाँ, तब तो मारवाड़ी बंडा पर हमारा अधिकार है । साधु -- पर हम आज्ञा लेकर उतरे हैं। मुनि - श्राज्ञा आप ठहरें उतने मकान की ली है या सब काठियावाड़ प्रदेश की ? साधु - टला बद्धा आड़ा-टेडा केम बोलो छो ? मुनि - महाराज ! आपने किसी परसेवा की कमाई से मकान
SR No.002447
Book TitleAadarsh Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1940
Total Pages734
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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