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________________ ५४५ भावनगर में प्रवेश मुझे आशा नहीं थी कि हमारे जैन साधुओं में भी इस प्रकार का ज्ञान है कि आज मैंने सुना है, अतः मैं मुनिश्री को प्रार्थना करता हूँ कि तीर्थ यात्रा तो श्राप जब चाहोगे तब ही कर सकोगे, पर फिलहाल एक मास यहाँ विराज कर आप खंभात की जनता को इस प्रकार उपदेश सुनायें कि जैनेतर विद्वानों को भी ज्ञान हो कि जैनों में भी ऐसे विद्वान् और समयज्ञ साधु हैं, तत्पश्चात् वकील साहिब ने अल्प किन्तु सारगर्भित व्याख्यान दिया, उसके बाद माणकमुनिजी वर्तमान जैनसाधुओं की परिस्थिति और पूर्व युग के साधुओं का परोपकार की तुलनात्मक विषय में व्याख्यान दिया, अन्त में सभा जयध्वनि के साथ विसर्जन हुई। ___ अफ़सोस है कि खंभात की जनता की इतनी आग्रह-पूर्वक विनती होने पर भी मुनियों का अधिक ठहरना नहीं हुआ। ८६ मुनि श्री का भावनगर में प्रवेश ___ वहाँ से भेरुंदा, पीपली होते हुए धोलेराव आये, वहाँ श्राप के दो व्याख्यान हुए, वहाँ से बलवाड़ा होकर वला में आये वहाँ श्रीउत्तमविजयादि कई मुनिराज विराजते थे, उनके साथ भी बहुत वार्तालाप हुई; पर वे साधु बड़े ही भद्रिक एवं सरल स्वभावी थे, लिखे-पढ़े तो कम थे पर आचार-व्यवहार ठीक था; वहाँ भी आप के तीन व्यख्यान पब्लिक में हुए वहाँ से सिहोर पधारे, वहाँ भी श्री लाभविजयादि कई साधु मिले, वहाँ आपके दो व्याख्यान हुए वहाँ से भावनगर पधारे। भावनगर में एक मारवाड़ी बंडा है, और वृद्धिचन्दजी महा. राज की समुदाय के कई साधु वहाँ ठहरे हुए थे, लब्धिमुनिजी
SR No.002447
Book TitleAadarsh Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1940
Total Pages734
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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