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________________ आदर्श ज्ञान द्वितीय खण्ड ५४४ साधुओं का वर्तमान आचार व्यवहार, विहार क्षेत्र की संकुचितता, परिग्रह की वृद्धि और निर-नायकता एवं स्वच्छन्दता पर जोर दिया गया था, तथा श्रावकों के बिना सोचे-समझे पक्षपात ने हो साधुओं को इस दक्षा पर पहुँचाया है, इत्यादि विवेचन किया। आपका व्या रुवान जनता को बहुत रुचिकर मालूम हुआ और दूसरे दिन इस प्रकार सार्वजनिक (पब्लिक ) व्याख्यान के लिए प्रार्थना की, पर मुनिश्री ने अपने को शत्रुञ्जय की यात्रा करने का कारण बतलाया तथा बिहार करने को कहा, इतने में माणकमुनिजी भी आ गये, जनता की आग्रहपूर्वक विनती को मान देकर एक दिन और ठtal स्वीकार कर लिया और सार्वजनिक व्याख्यान देना भी नि. श्चय कर दया । को दूसरे दिन ठीक एक बजे सभा हुई, आचार्य श्री के साधुओं आमन्त्रण करने से उनके दो साधु सभा में आये, पर उस पार्टी के गृहस्थ लोग प्रायः सबके सब हाजिर हो गये तथा दूसरे भी जैनजैनेतर खूब गहरी तादाद में उपस्थित हो गये थे, कारण पहिले दिन के व्याख्यान ने जनता पर अच्छा प्रभाव डाला था, जिससे कि व्याख्यान सुनने की लोगों की अत्यंत रुचि थी । सर्व प्रथम तो हमारे चरित्र नायकजी ने व्याख्यान देना प्रा. रम्भ किया। आपका विषय था "जैन धर्म की फिलासाफी और वर्तमान विज्ञान", इस पर एक घंटा तक इस खूबी से व्याख्यान दिया कि क्या पुराने जमाने के और क्या नई रोशनी वाले, आपका भाषण सुनकर मंत्र मुग्ध बन गये; यह व्याख्यान खंभात की जनता के लिए सर्व प्रथम ही था, तत्पश्चात् एक वकील का आधे घंटे तक भाषण हुआ । उसने पहिले तो मुनिश्री के लिए कहा कि
SR No.002447
Book TitleAadarsh Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1940
Total Pages734
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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