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मारवादी साधु० मारवाड़ी गंडा
नहीं बनाया है कि इसपर इतना हक्क रखते हो? आपका कर्तव्य तो यह था कि हम आपके मेहमान आये तो हमारा आप स्वागत करते, वह तो दूर रहा, पर आपमें इतनी उदारता भी नहीं कि बिल्कुल खाली पड़ा हुआ मकान को उतरने के लिए देने में भी इन्कार करते हो, यह कैसी साधुता ? यह कैसी वात्सल्यतो ? और यह कैसी दया ?
साधु-केटला दिवस ठेर शो ? । मुनि-हमको यहाँ चतुर्मास नहीं करना है। साधु-ठीक छे, नीचे उतरी जावो ।
इतने में तो कुंवरजीभाई, जसराजभाई, देवचंदभाई, गुलाबचन्दभाई, कर्मचन्दभाई वैगरह श्रावकों को खबर पड़ने पर सब लोग यहाँ आये, मुनिश्री को वन्दन कर कहा, साहिब क्यारे पधारथा छो?
मुनि-आधो घंटो थयो हशे। श्रावक-त्यारे भंडोपकरण केम नथी मुकता ? मुनि-आ सधु अहीं ठेरवा माटे ना पाड़े छ । श्रावक-शुं करवा ? मुनि०-शायद आ मकान पा साधुओं ने पटाबंद हशे ?
श्रावक-ना साहिब, अमारी आज्ञा छे, आप खुशी थी ठेरो, श्राप जेवों ना पागल्या क्या पड्या छे, अमने तो काल पधारवानी खबर हती अने सामया वैगरहः नी बधी तैयारी किधी हती, पण आप तो छाने माने पधारी गया; एटले अमारा मन नी मन मांज रही।
मुनिराज मारवाड़ी बंड़ा में ठहर गये, और श्रावक लोगों ने