________________
- ४५
-
राणकपुर हो आये सादड़ी विद्या का उपदेश दिया। थी स्कूल पहिले से वहाँ पर, जिसका ही बोर्डिग किया । हो वरकाणे फिर आये पाली, लायब्रेरी खुलवाई थी कन्यापाठशाला झाड़ लगाकर, अविद्या दूर हटाई थी ।।१३१।।
चतुर्मास की करी विनंती, फिर भी कापरड़े जाना है। संघ पालीका आया मेले पर, कहो अब क्या फरमाना है। कौसाना बडलू आये फलौदी,रूण खजवाना था नागोर ।
मंदिर शिखर ध्वजा दंड की, करी प्रतिष्ठा था बहु जोर ।।१३२॥ खजवाना रूण नोका हरसाला; पीपाड़ कापरड़े भाये थे । सोजत हो कर आये पाली, चौमासे ठाठ सवाये थे। जीनाणीजी उच्छव करके, भगवती सूत्र बचाया था। अहा-हा वाणि देव जिनेन्द्र की, धर्म को खूब दीपाया था ॥१३।।
कन्याशाला और लायब्रेरी, जिनको मदद पहुँचाई थी। समवसरण की रचना कारण, भावना और बढ़ाई थी । उठा लिया बीड़ा श्रीसंघ ने, फिर देरी का था क्या काम ।
स्वर्ग सदृश मंडप की रचना, देख जनता पाया आराम ॥१३४॥ बहुत लोग बाहर से आये, नगर के कब शेष रहे ।
आठ दिन तक उच्छव भारी, जिसकी महिमा कौन कहे ।। वरघोड़ा में आया हस्ती, लवाजमा का पार नहीं। जैन जैनेत्तर मुख से कहते, जैन धर्म की प्रभा सही ॥१३५॥
सोजत होकर आय बीलाड़े, बाले प्रतिष्ठा करनी थी। वहाँ भी धर्म की हुई उन्नत्ति, जोकि हृदय धरनी थी । वहाँ से पधारे तीर्थ कापरड़े, यात्रा करके वीसलपुर । जन्म भूमि उपदेश सुनाया, फिर आये थे जोधपुर ॥१३६॥