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कन्या पाठशाला खुलवाई, अज्ञ को दूर भगाया था । पाठशाला की थी शिथिलता, जिसको आप जगाया था ।। व्याख्यान का रस कहूँ कहा लों, ठाठ हमेशा भारी था । शुभ चिन्तक समाज वहाँ पर, समाज को हितकारी था ॥ १२५ ॥ मुच्छाला महावीर यात्रा, फिर घाणेराव में आये थे । स्वागत किया श्रीसंघ भक्ति से, पब्लिक व्याख्यान सुनायेथे ॥ ओसवाल और पोरवाल में, व्यर्थ का झगड़ा भारी था । उपदेश का कुछ असर हुआ पर, होनहार बलकारी था ।। १२६ ।। पंच तीर्थ की करी यात्रा, फिर नगर लुनावे आये थे वाली जा उपदेश दिया वहाँ समवसरण रचवाये थे । कई ग्रामों के आये भावुक जन, दर्शन कर आनन्द पाया था जैन - जैनेतर जैन धर्म का, यशः धवल गुण गाया था ॥ १२७ ॥ मतभेद था वहाँ के श्रीसंघ में, जिसको आप मिटाया था । कई मुमुक्षु ज्ञान ध्यान कर, अपूर्व लाभ उठाया था ॥ वरकाणा बाग में करके स्थिरता, समर जीवन बनाया था ।
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संघ आग्रह से आप लुनावे, चतुर्मास वहाँ ठाया था ॥ १२८ ॥ व्याख्यान में श्रीसूत्र भगवती, श्रानन्द अपूर्व छाया था । विद्या प्रचार और सुधारे, युवकों को खूब सुहाया था ।। कन्या पाठशाला थी खुलवाई, बाल मण्डल स्थपाया था । कई हजार पुस्तकें छपाई, अज्ञ को मार भगाया था ।। १२९ ।।
पर्युषणों के शुभ अवसर पर, बाली संघ वहाँ आया था । अर्ज करी गुरुवर से काफी, मुझ पर हुक्म लगाया था ।
जा करके वहाँ पर्युषणों का, संघ को कल्प सुनाया था । हुई प्रभावना श्रीसंघ में, वापिस लुनावे आया था ॥ १३० ॥