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________________ - ४३ - संघ सादड़ी कई वर्षों से, आशा आपकी रखता था। सफल मनोरथ हुई विनती, व्याख्यान में रंग बरसता था । लुनावा में भाषण हुए फिर, सेवाड़ी बीजापुर आये थे। बीसलपुर में व्याख्यान आपके, हर्ष का पार न पाये थे ॥११९॥ मूर्ति की प्रतीष्ठा करवाई, शान्ति स्नात्र भणाई थी। जीवनमल को देकर दीक्षा, धर्म की प्रभा बढ़ाई थी। सुमेरपुर से शिवगंज पधारे, संघ सकल हरषाया था। ठाठ व्याख्यान का था अतिभारी, ज्ञान अमृत बर्साया था ॥१२०॥ वहाँ से चलकर आये बाली, संघ सामने आया था । गाजा बाजा और धाम धूम से, नगर प्रवेश करवाया था । व्याख्यान सुनकर वहाँ की जनता, जैन धर्म यशः गाती थी। उपदेश दिया था कन्याशाला का वे भी मंगल मनाती थी ॥१२॥ वहाँ से आप मुडारे पधारे, सादड़ी में पहुँची खबर । . नर-नारी का लग गया तांता, उच्छव मनाया अति जबर ॥ खुडाले वालों के कारण संघ में, मतभेद कुछ खड़ा हुआ। जिसका फैसला दिया गुरु ने, शांति का साम्राज्य हुआ ॥१२२॥ फिर तो था क्या कहना संघ में, भगवती का उच्छव किया। नथमल था जाति विदामिया, उसने अग्रे भाग लिया । जाति महोदय ग्रन्थ के कारण, संघ में अच्छा चन्दा हुआ । और अनेकों छपी पुस्तकें, सद् ज्ञान का प्रचार हुआ ॥१२॥ पर्व पर्युषण ठाठ अपूर्व, उत्साह संघ में भारी थे। विशाल स्थान बन गयाथा छोटा,कहाँबठेइतने नरनारीथे। आज्ञादी गुरुवर ने मुझको, बड़ा उपासरे जाकर किया । अट्ठाई और कल्पसूत्र का, जोरों से व्याख्यान दिया ॥१२॥
SR No.002447
Book TitleAadarsh Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1940
Total Pages734
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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