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________________ - ४२ - रानी स्टेशन वाली मुन्डारे, सादड़ी में प्रवेश किया । देख उत्साह वहाँ के सङ्घ का, स्थिरता कर व्याख्यान दिया । सङ्घ साथ में राणकपुर की, यात्रा कर आनन्द पाया था। 'मुंवारों के दर्शन करके, हर्ष खूब मनाया था ॥११॥ भानपुरा सायरा ढोल नांदामा, गांव घोबूंदे आये थे। करने थे दर्शन मन्दिरों के, पन्थी चाबी नहीं लाये थे । पाखण्डियों को खूब फटकारे, किसने तुम्हें पतित किये ।। मांस मदिरा छुड़वाया जिनको, कृतघ्नी हो विसराय दिये ॥११४॥ नाम सुना जब गयवर मुनि का, चट से चाबी लाये थे । ठहरने को मकान खोल दिया, गोचरी के घर बताये थे । देकर के व्याख्यान उन्हों को, उत्पत्ति हाल बताया था। अवर था प्रभाव आपका, मंदिरों के नियम दिलाया था ॥११५॥ मदार गये फिर उदयपुर के, श्रावक सामने आये थे। प्रबंध किया स्वागत का अच्छा, नगर प्रवेश कराये थे। ओसवंश के श्राद्य संस्थापक, रत्नप्रभ सूरीश्वर थे। माघ शुक्ल पूनम के शुभ दिन, जयन्ति के अप्रेश्वर थे॥११६॥ जुलूस बनाया खूब जोर से, व्याख्यान गुरू का भारी था। श्रोसवंश इतिहास सुनाया, सूरि महा उपकारी था । सुनके अपूर्व हाल गुरुवर से, भक्ति अपूर्व जागी थी। अति आग्रह से करी विनती, पर प्रीत धूलेवे लागी थी ।।११७॥ वहां से चलकर आये केसरिया, यात्रा का ठाठ सवाया था। अनुभव मुंह से कहा न जाता, आनंद अपूर्व छाया था। पांच दिन करी भक्ति यात्रा, फिर उदयपुर श्रये थे। आग्रह था श्रीसंघ का काफी,मरुधर में अन्नजल लायेथे॥११८॥
SR No.002447
Book TitleAadarsh Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1940
Total Pages734
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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