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________________ - ४१ - साथ संघ के तीर्थ कापरड़े, यात्रा कारण आये थे । भाग्योदय बीलाड़े पधारे, मैं भी दर्शन पाये थे ॥ महात्मा था दास तनसुख, उसके जरिये मिलाप हुआ । चर्चा चली मूर्ति पूजा की, मिथ्या हट को छोड़ दिया ॥१०७॥ मूर्ति पूजा के थे पाठ सूत्रों में, उल्टा अर्थ हम करते थे। सच्चा भाव बताया गुरु ने, जिसे पहले हम डरते थे ॥ मुँहपत्ती का था प्रश्न दूसरा, मिथ्या डोरा हटाया था। चैत्र कृष्ण तृतिया त्रिअसी, शुद्ध संयम गुरु से पाया था ॥१०८॥ तीर्थ कापरड़े करी यात्रा, पीपाड़ नगर में आये थे। पुत्र लग्न के कारण कोठारी; अठाई उच्छव मनाये थे । वहाँ से चलकर आये बगड़ी, प्रतिष्ठा ठाठ सवाया था। सोजत नगर में रहे. कल्पते, चौथमलजी वहां आया था ॥१०९।। भैसाणा में जैन मन्दिर का, जीर्णोद्धार कराना था । सोजत के अप्रेश्वर साथ में, चलकर वहां पर पाना था।। मालक वहां के रावराजाजी, व्याख्यान सुनके हुक्म दिया। वापिस पाये सोजत शहर में, बिलाड़े जा चौमास किया ॥११॥ प्रभाविक था अंग पांचवाँ, ब्याख्यान में फरमाया था । पतितों को पावन बना कर, धर्म झड फहराया था । हुआ प्रेम फिर जिन मंदिरों से, वहाँ से विलावस आये थे । . पब्लिक हुए व्याख्यान आपके, धीनाव के दर्शन पाये थे ॥१११॥ पाली संघ की थी अति आग्रह, गुरुराज वहाँ पधारे थे। जाना था मेवाड़ केसरिया, सेठ मुलतानमल लारे थे । फिर भी आग्रह श्रीसंघ का, वहाँ पब्लिक व्याख्यान हुए । गुंदोच होकर आये विजावे, वरकाणे पास के दर्श हुए ॥११२॥
SR No.002447
Book TitleAadarsh Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1940
Total Pages734
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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