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________________ संप आग्रह से आये बीलाड़ा, उपदेश आपका भारी था । सिरेमलजी के षट् प्रश्नों में, नथमल सहचारी था। समझ गये संघवी उत्तर से, कल्पित मत का त्याग किया । आम सभा के बिच सिंघीजी, वासक्षेप गुरुवर से लिया ॥१०॥ ज्ञान प्रकाश मित्र मण्डिल को, स्थापित श्राप उपकारीथे । सेवा भक्ति करते संघकी, मिथ्यामत बिडारी थे। रावत सीरवी और था भाना, बन गये धर्म के रागी थे । वादी नत मस्तक हो गये, शासन के वे दागी थे ॥१०२॥ वहाँ से चलकर आये कापरड़े, चौमुख मन्दिर भारी था । चार मंजिल पार्श्व की प्रतिमा, यात्रा रंग एक तारी था । लग्न लगी तीरथ की दिल में, जन्मभूमि का गौरव था । नेमिसूर का अथाह परिश्रम, अहा-हा तीर्थ गौरव था ॥१०॥ पीपाड़ में छाई थी बेपरवाही, फिर भी आप पधारे वहाँ । व्याख्यान का रंग जमा रात में उपकार आपको करना वहाँ। जैनेत्तर बन गये अनुरागी, चतुर्मास का आग्रह किया । बीलाड़ा संघ की लेकर आज्ञा,वहाँ रहने का वचन दिया ॥१०४॥ पंचम अंग व्याख्यान बीच में, इस कदर फरमाते थे। भूले भटके श्रद्धा हीनों को, सद् रास्ते पर लाते थे । सेठ वन्शी लाल कन्हैया, चन्द्रभान जवहरी थे । मदन मोहन नेमीचन्द अरु, तेज लाभ के धारी थे॥१०५॥ जैन मित्र मंडल खुलवाया, काम उसका सुचारू था । जैन लायब्रेरी और स्थापाई, सभा श्वेताम्बर वारू था ।। बाल मण्डल भविष्य की आशा, जन धर्म चमकाया था। नहीं थे स्वप्ने और पालने, श्रामद से नया बनाया था।।१०६॥
SR No.002447
Book TitleAadarsh Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1940
Total Pages734
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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