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- ३१ - मारवाड़ में कई मन्दिरों की, आशातना का पार नहीं। देकर के उपदेश आपने, संस्था एक खुलाई सही । तीर्थ प्रबन्ध कारिणी कमेटी, स्थान फलोदी मुकर्रर किया। ईठंतर मन्दिरों के हाल ने, बन्ध नैत्रों को खोल दिया ॥९५।।
तीर्थ फलोदी पार्श्वनाथ की, यात्रा आनन्द कारी थी। ध्वजा दण्ड नहीं था मंदिरों पे,और आशातना भारी थी ।। उपदेश दिया था विद्यालय का,भक्तों ने हुक्म उठाया था।
इसी गरज से तीर्थ स्थान में, रहना मन ललचाया था ॥१६॥ जाकर दिया उपदेश मेड़ते, बहादुरमल वहाँ हाकम थे। पर कुदरत को मंजूर नहीं था, क्योंकि नसीब ही कम थे।। जैन जाति महोदय ग्रंथ की, शुरुआयत वहां कीनी थी। मुक्तावली की समालोचना, मोती को शिक्षा दीनी थी ॥९७।
दिगम्बरों ने वहाँ पूजा बांयने, मन्दिरों में हकजमाया था । ' सेवगों ने मूर्ति गुम करदी, अत्याचार मचाया था ।।
ऋषभदादा के गुरुबनने का, मिथ्या भ्रम फैलाया था ।
सबका स्वागत हुआ यथोचित,सीधा रास्ता बतलाया था।।९८॥ चतुर्मास के बाद मेड़ते, फिर पीसांगन आये थे । उपदेश आपका था मंडेली, कई सुधार करवाये थे । जैन लायब्रेरी थी खुलवाई, फिर अजमेर मन भाया था । बीर निर्वाण से वर्ष चौरासी, ओमाजी लेख दिखाया था ॥१९॥
उस प्रदेश में घूम घूम कर, सत्य उपदेश सुनाया था । पवितों का उद्धार करन में, कष्ट बहुत उठाया था । कुड़की केकीन आनन्दपुर हो, बलुंदे जैतारन आये थे । मरिया में शाबार्थ कर, पाखण्ड जोर हटाये थे ॥१०॥