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________________ ३८ - संघ आग्रह से लोहावट, वहाँ भी श्रानंद छाया था । जैन नवयुवक मित्र मण्डल को, खोल सुधार कराया था । ज्ञान प्रचार संस्था एक स्थापी, पुस्तकें खूब छपाई थी । महामहोत्सव के साथ व्याख्यान में, बच रही भगवती भाई थी ॥ ८९ ॥ न्याति जाति कई हुए सुधारे, धर्म की प्रभा बढ़ाई थी । स्थानकवासी थे हीरालालजी, मत्ति की चर्चा चलाई थी। ► उनके मकान पर जाकर गुरु ने सूत्रों के पाठ दिखाया था । जैन - जैनेत्तर बिच सभा में, विजय डंके बजाया था ।। ९० ॥ वहाँ से चलकर आये नगीने, साथ में वदन भण्डारी थे । बड़ा ठाठ से हुआ सम्मेला, विद्यालय उच्छव भारी थे । व्याख्यान हुआ गुरुवर का वहाँ, सुनकर सब हर्षाये थे । चतुर्मास की करके विनती, श्रानन्द खूब मनाये थे ॥९ ॥ रात्रि जागरण और वरघोड़ा, आगम उच्छव बनाया था । व्याख्यान बीच में सूत्रभगवती, पढ़कर अमृत पाया था ।। वीर मंडल की करके स्थापना, समवसरण रचाया था । बड़ा मन्दिर पर शिखर दंड का, उपदेश आप फरमाया था ॥ ९२ ॥ जैन-धर्म की हुई प्रभावना, चौमासा खूब दीपाया था । वहीँ से पधारे नगर कुचेरे, विद्यालय खुलवाया था । मित्र मंडल की हुई स्थापना, सेवा खूब बजाते थे । हुई जागृति धर्म समाज में, नरनारी गुण गाते थे ॥ ९३ ॥ फिर खजवाने श्राप पधारे, पाठशाला जैन खुलाई थी । स्थापना कर के मित्र मंडल की, वीर जयन्ती मनाई थी ॥ अति श्राह से रूण पधारे, युवक वहां उत्साही थी । ज्ञान प्रकाश मंडल की सेवा, वहाँ सुन्दर कार्यवाही थे || १४ ||
SR No.002447
Book TitleAadarsh Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1940
Total Pages734
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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