SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 613
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्रादर्श-ज्ञान-द्वितीय खण्ड ५२४ अतिरिक्त छन्द, कवित्त, दृष्टांत वगैरह देते हो जिससे कि परिषदा बहुत खुश रहती है, अतः व्याख्यान तो तुमको ही बाँचना पड़ेगा, यदि तुम कहो तो गोचरी पानी मैं ला सकता हूँ। __ मुनि०-नहीं गुरू महाराज जनता श्रापके व्याख्यान से बहुत खुश है आप अपने ध्यान का समय न दे सकें यह बात दूसरी है और मेरी उपस्थिति में आप गौचरीपानी ला यह कैसे बन सकता है ? खैर मैं जितना अभ्यास होगा उतनाही करूँगा। अभ्यास से भी मैं आपके बचनों की आराधना अधिक कल्याण का हेतु समझता हूँ। । मुनिश्री के पीछे केवल व्याख्यान एवम् गोचरी का ही काम नहीं था, पर गुरु महाराज ने यह भी आज्ञा करदी थी कि तुमको ४०० थोकड़े आते हैं, इन सबको छपवा दो, वरना संवेगी समुदाय में थोक ड़ों का प्रचार कम होने से तुम भूल जाओगे। यह शास्त्रों का एक सार है, तुम्हारे अभ्युत्थान का मूल कारण है। तुम व्याकरण आदि नहीं पढ़े हुऐ होने पर भी लोगों में तुम्हारी पूरी धाक जम गई है कि मारवाड़ी साधु शास्त्रों का अच्छा जानकार है; अतः यहां द्रव्य-सहायक भी बहुत हैं, और प्रेस का संयोग भी अच्छा है, अतः सब थोकड़ें छपवा दें। यह भी आपके सिर पर एक जबरदस्त काम था, कारण थोकड़ा लिखना, प्रेस कापी तैयार करना, प्रफ संशोधन करना इत्यादि; इतना काम था कि जिसकी वजह से समय बहुत कम मिलता था, इतना ही क्यों पर कई लोगों के प्रश्न भाते थे, उनके उत्तर भी आपको ही लिखने पड़ते थे । तथापि मुनिजी एक पुरुषाथ एवम् परिश्रमी जीवी थे कि इतना काम होते हुए भी आपने व्याकरण पढ़ना शुरू कर दिया था।
SR No.002447
Book TitleAadarsh Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1940
Total Pages734
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy