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व्याकरण का अभ्यास
मुनिश्री ने गुरु वचन शिरोधार्य कर उसी दिन मुहूर्त कर दिया। पंडितजी ० - को मुनिजी आप शुं शुरू करशो ?
मुनि० - जैसी आपकी इच्छा; किंतु मेरे पीछे व्याख्यान एवं गौचरी पानी आदि की मटें बहुत हैं, थोड़े समय में मैं जो श्र भ्यास कर सकूँ ऐसा शास्त्र प्रारम्भ करिये ।
पंडित - मेरे विचार से तो आप संस्कृत मार्गोपदेशिका शुरू करलें और उसके दो भाग चार मास में हो भी जावेंगे, तथा इनसे आपका काम भी निकल जावेगा। यदि आप आगे अभ्यास को बढ़ाओगे तो भी आपको बहुत अच्छी सुविधा रहेगी ।
मुनि० - गुरु महाराज को पूछा कि पंडितजी संस्कृतमार्गोपदेशिका के लिये कहते हैं ।
योगी० - हाँ, बहुत अच्छा है; फिलहाल तुम दो भाग कंठस्थ कर लो बाद योग मिलेगा तो दूसरा व्याकरण भी सुगम हो जावेगा ।
बस, मुनिश्री ने संस्कृतमार्गोपदेशिका का पढ़ना शुरू कर दिया, पर पढ़ाई का समय तो प्रातःकाल का था, उसमें तो आप को सुबह से १२ बजे तक तो अवकाश ही नहीं मिलता था, दोपहर को थके हुए कितनी पढ़ाई कर सके ।
मुनि - गुरू महाराज ! यदि आप कृपा कर व्याख्यान बांचा करें तो मैं दोनों भाग इसी चतुर्मासा में कण्ठस्थ कर लूँ ।
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योगी – मुनिजी व्याख्यान तो आपको ही बांचना पड़ेगा, कारण कि एक तो भगवती सूत्र के सत्र थोकड़ा तुम्हारे कण्ठस्थ हैं; अतः जिस प्रकार मूल पर तुम भगवती सूत्र बाँच कर समझाते हो, वैसे मैं नहीं समझा सकता हूँ; दूसरे परिषदा जैसी तुम्हारे से प्रसन्न है वैसी मेरे से नहीं होगी, कारण तुम सूत्र के