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________________ ५२२ ओदर्श-ज्ञान-द्वितीय खण्ड लिये उपचरित नय से शास्त्रकारों ने आठ स्पर्श बतलाए हैं; इस पर हेमाद्र भाई ने मुनिश्री का बड़ा भारी उपकार माना, और कहा कि साहिब, हूँ तो एक अभ्यासी हुँ पण आ वात मोटा मोटा मुनिराज पण नहीं जाणता होय, आप सूक्ष्म दृष्टि थी सागे जाणपणो कीधो छ । ____ इससे श्रोतागण पर मुनिश्री का बहुत अच्छा प्रभाव पड़ा और हेमचन्द्र भाई ने भी व्याख्यान के बीच में तर्क वितर्क करना छोड़ कर रात्रि में हमेशा आ कर प्रश्नोत्तर किया करता था; व्याख्यान के प्रेमियों ने भी कहा कि 'पा मारवाड़ी साधु ठीक आव्या छे के व्याख्यान नो मार्ग निष्कंटक बनावी दी), ___ एक दिन हेमचन्द्र भाई, गुरू महाराज ने अर्ज की के आपना शिष्य श्रा मारवाड़ी साधु सारा विद्वान अने शास्त्रो ना जानकार छे अने व्याख्यान नी शैली एवम् तर्क-समाधान करवानी ढब पण सारी छे, पण साहिबजी तेमने व्याकरण नो ज्ञान भोलो होवाथी शब्द शुधी नथी, एटले आप तेमने थोडु व्याकरण नो अभ्यास करावो तो भविष्य में ये एक सारां मां सागे साधु निवड़ी सके । ___ योगीराज ने ते वख्तेज श्रावकों ने कही दीधु के एक सारो शास्त्रीहोय तो लाओ, एटले मुनिजी ने व्याकरण शुरू कराविये । इतना कहने पर क्या देरी थी, श्रीयुक्त मनसुखराम शास्त्री को बुला लाये और मुनिजी को गुरु महाराज ने आदेश देदिया कि सिवाय व्याख्यान और गौचरी के जितना समय बचे पंचायत न कर के आप व्याकरण का अभ्यास किया करो, जो आ तमारे माटे पंडित तैयार छ, व्याकरण नो अभ्यास करशो तो तमारा ज्ञाननी शोभा वधारे थाशे एटले व्याकरण नो ज्ञान अवश्य करो।
SR No.002447
Book TitleAadarsh Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1940
Total Pages734
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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