SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 606
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५१७ व्याख्यान में श्री भगवती सूत्र __इस वर्ष सुरत में बहुत से साधुओं के चतुर्मास थे । जैसे, नेमुभाई की बाड़ी में, मोहनलालजी के उपाश्रय में, हरीपुरा में, छापरिया सेरी में, संग्रामपुर में, इत्यादि सब उपाश्रयों में चतुर्मास था; किन्तु मुनिश्री के व्याख्यान ने तो सब उपासरों की परिषदा तोड़ डाली । कारण, श्रापका व्याख्यान इतना रसीला था, फिर श्रीभगवती सत्र का अतिशय प्रभाव और सूत्र बांच कर समझाने की छटा तदुपरान्त छन्द, कवित्त, और दृष्टान्त इतने सारगर्भित थे कि जिसने एक बार भी आपश्री का व्याख्यान सुन लिया तो उसको दूसरी बार पाना ही पड़ता था । __ जब आप श्री ने व्याख्यान में श्रीभगवतीसत्र बांचना प्रारम्भ किया तब मठवासी साधुओं ने यह प्रश्न उठाया कि "टूढ़िया थी आवेला साधु दीक्षा कौने पास लीधी, योग कौने पास कि या, अने भगवती ना योग किया सिवाय भगवती सत्र बांचे तो अनंत संसार वृद्धि नो कारण थाय छे, अने सूत्र बांचवा वाला अनंत संसारी छे त्यारे सुनवा वालों ने लाभ क्या थी थाय । एटले बड़ाचोटा ना उपासरे कोइ ने व्याख्यान संभलवा जागो नहीं इत्यादि निंदा के नांद फूकने लगे।" योगीराजश्री ने एक दिन व्याख्यान में बैठे कर स्वयं कहने लगे कि लोग ईर्षा के कारण जो कुछ कहते हैं वह सब मिथ्या है, यदि मेरे पास आ कर कहें तो मैं साफ़ जवाब देने को तैयार हूँ कि मुनिजी को मैंने छोटी एवं बड़ी दीक्षा दी है तथा श्री भगवती सूत्र के सच्चे योग जो करने चाहिये मुनिजी ने किये हैं और श्री भगवतीजी सूत्र वांचने का आपको बराबर अधिकार है इत्यादि । दूसरों के लिये मुझे कहने की यहाँ जरूरत तो नहीं थी पर कई ३३
SR No.002447
Book TitleAadarsh Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1940
Total Pages734
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy