________________
आदर्श-ज्ञान- द्वितीय खण्ड
५१६
ने बिना योग किये ही आचार्य पदवी लेली जैसे कि स्वामि श्रात्मा
रामजी ने ली थी ।
अन्ध परम्परा के उपासकों में बाज भी उस योग और उपधान की क्रिया को स्थान मिल रहा है पर साथ में सुधारक लोगों का विरोध भी कम नहीं है वे डंका की चोट से कहते हैं कि ब यह पोपलीला अधिक समय नहीं चल सकेगी हाँ कनक और कामनी की अभिलाषा वाले साधु थोड़े दिन भले चलाले पर जमाना जागृति एवं सत्य का आ रहा है
I
८१ वि० सं० १९७५ का चतुर्मासा सूरत में
हमारे चरित्रनायकजी को इस वर्ष सुरत बड़े चौटे गुरु महाराज की सेवा में चतुर्मासा करने का शौभाग्य प्राप्त हुआ, यह ब हुत ही खुशी की बात है। योगीराज की इच्छा तो हमेशा निवृत्ति की ही रहती थी, फिर भी मुनिश्री का संयोग मिल गया । सब खटपट आपने मुनिश्री पर डाल दी, इतना ही क्यों पर व्याख्या न भी मुनिश्री को सौंप दिया था। आपने पहले तो श्री सुखविपा कसूत्र व्याख्यान में बांचा था, बाद में श्री संघ के अत्यन्त श्रा ग्रह से श्रीमान् छोटूभाई इच्छाचंद झवेरी के वहाँ रात्रि जागरण, वरघोड़ा एवं पूजा प्रभावना पूर्वक व्याख्यान में श्री भगवती सूत्र बांचना प्रारम्भ किया । सेठ चुन्नीलाल, दूसरा चुन्नीलाल, नानचंद, फकीरचंद, बालूभाई, इच्छाचंद और सादड़ीवाला उदय राम वनाजी, किसनाजी, जोधाजी वगैरह : आपके पूर्णभक्त थे और अग्रसर भी थे ।