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पन्यास की पाप लीला
बढ़ी दीक्षा मानेगा कौन ? इस बात का भी विचार कर लेना ? आत्मा - किस पूर्वाचार्य ने यह लिखा है कि रूपये ले कर योग करवाना ?
पन्यास -- योग करवाने का रूपये नहीं लिया जाता है पर पुस्तकादि के लिये जरूरत है अतः आपको कहा है यदि ऐसे अवसर पर ही काम नहीं निकले तो फिर कब निकलेगा ?
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आत्मा - आपकी इच्छा हो तो योग करावें हमतो एक पैसा भी नहीं दीरावेंगे और इस बात का मैं जोरों से विरोध भी करूँगा । पन्यास — बिचारा पन्यास घबड़ा गया और कहा कि ठीक है तुम योग तो कर लो फिर तुम्हारी इच्छा हो सो करना ।
अत्मा - योग कर लिया पर वे समझ गये कि यह क्रिया बिलकुल कल्पित है ।
जिस समय आत्मारामजी ढूँढ़ियों से आये थे उस समय संवेगी साधु इतने शिथलाचारी बन गये थे कि उनके परिग्रह को देख स्वामिज) को अतिशय दुःख हुआ क्योंकि वे साधु वर्तमान के यतियों की भांति डेरा डाल कर एक ही स्थान में बैठ गये थे । श्रतः स्वामि श्रात्मारामजी ने अहमदाबाद में चतुर्मास कर ऐसा उपदेश दिया कि उन पासत्थों को बिहार कर अपने आप को संभा लना पड़ा ।
स्वामि आत्मारामजी महाराज ने योग एवं उपधान की कल्पि - त क्रिया को निर्मूल करने के लिये मुनिराज श्री कान्तिविजयजी हंस विजयजी को पंजाब में आप स्वयं बड़ी दीक्षा दे दी जो कि पन्यास बिना दी नहीं जाती थी इस पर भी उन पंजाबी शेर के सामने किसी पन्यास ने चूं तक भी नहीं किया । इसका अनुकरण रूप में आचार्य विजयधर्म सूरि और आचार्य विजयवल्लभ सूरि